नई दिल्ली: भारत और फ्रांस के बीच राफेल सौदा एक बार फिर विवादों के दायरे में आ गया है. फ्रांस में 'फ्रेंच नेशनल फाइनेंशियल प्रोसेक्यूटर्स ऑफिस (PNF)' ने एक जज को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा है. बता दें इस डील में कमीशन के रूप में लाखों यूरो की रिश्वतखोरी का खुलासा मीडियापार्ट नाम की वेबसाइट ने इस वर्ष अप्रैल में किया था. इसके बाद वित्तीय अपराधों में विशेषज्ञता रखने वाले NGO शेरपा ने जांच के लिए आधिकारिक केस दर्ज करवाया था. इसी के आधार पर मौजूदा तफ्तीश करवाई जा रही है. भारत में भी पिछले 3-4 वर्षों में राफेल डील में भ्रष्टाचार का मुद्दा बहुत छाया हुआ रहा था, हालांकि, भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ही नरेंद्र मोदी सरकार को राफेल सौदा मामले में क्लीन चिट दे दी थी. लेकिन इसके बावजूद 2019 के चुनावों में यह विपक्ष की ओर से बड़ा सियासी मुद्दा था. प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने राफेल सौदे में CBI जांच की मांग करते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी. किन्तु 2019 के चुनावों के ठीक पहले दिसंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मांग को मानने से इंकार करते हुए याचिका निरस्त कर दी. इसके बाद तीनों ने एक रिव्यू पेटिशन दाखिल की. मई 2019 में शीर्ष अदालत ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. अक्टूबर 2019 में भारत को राफेल की पहली खेप प्राप्त हुई. नवंबर 2019 में शीर्ष अदालत ने रिव्यू पेटिशन को भी ठुकरा दिया. अप्रैल में मीडियापार्ट के खुलासे के बाद वकील एम एल शर्मा ने फिर से PIL दायर की. इस याचिका में पीएम नरेंद्र मोदी को प्रतिवादी नंबर एक बनाया गया था. शर्मा का आरोप था कि इस डील में कमीशनबाजी की गई है. शर्मा ने कोर्ट से पीएम मोदी के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग करते हुए राफेल समझौते की CBI जांच कराए जाने की मांग की है. याचिका में ब्रोकर सुशेन गुप्ता का भी उल्लेख किया गया है. सुशेन गुप्ता और उसकी कंपनी डेफसिस सॉल्यूशन का मीडियापार्ट की रिपोर्ट में भी उल्लेख है. हालांकि, फिलहाल फ्रांस ने इस सौदे की जांच शुरू करने के निर्देश दिए हैं, वहीँ भारत में अभी इस पर कोई जांच नहीं चल रही है . दिल्ली में पेट्रोल के दामों में आया उछाल, जानिए क्या है आज का भाव ओएनजीसी ने वित्त वर्ष 22 के लिए 30,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की बनाई योजना होंडा कार अगले महीने से अपने पूरे मॉडल रेंज के वाहनों की बढ़ा सकता है कीमत