कोई एक वजह जो दुनिया के 200 देशो मे से भारत को सबसे अलग बनाती है, तो वो ये हैं कि हमारे देश में, भले ही तन पर कपड़ा ना हो और इंसान के पेट में अन्न ना हो, लेकिन, धर्म एक ऐसा विषय हैं जो मानव के जन्म लेने के पहले से, मरने के बाद जलाने या दफ़नाने तक इंसान से बिलकुल फेविकोल के मजबूत जोड़ की तरह जुड़ा रहता हैं | जब धर्म का अर्थ जानने की कोशिश करी तो पता चला पुरातन शास्त्रों के अनुरूप आचरण करना ही धर्म हैं. सदियों से चली आ रही परम्पराओ को बिना सवाल किये अपना लेना ही धर्म हैं | घर के बुजुर्गो की जिनमे आस्था हैं उनकी आप भी उपासना करो यही धर्म हैं | विशुद्ध रूप से जहां से सिद्धांत समाप्त होते हैं वही से धर्म का शंखनाद होता हैं | आतंकी हमले के बाद भी अमरनाथ यात्रा में भक्तो का जाना, बवंडर के बावजूद केदारनाथ के कपाट खुलने का इन्तजार करना, सांस लेने की दिक्कत के बाद भी माता वैष्णोदेवी के ऊँचे पर्वत पर पैदल यात्रा करना, कैसे भी हो मौत से पहले मक्का-मदीना की पाक ज़मी पर सजदा करना, ये बताता हैं की हम अपनी आस्था,आराध्य और धर्म को लेकर कितने संवेदनशील हैं. सोचने वाली बात ये हैं कि हम सब में ये, संवेदनशीलता, ये आस्था, ये भक्ति भाव का संचार करता कौन हैं, तब हम तलाशते हैं ऐसे विद्वान्, ज्ञानी, आचार्य, मुनि महात्मा, संत, को जो इन शास्त्रों, वेदों, पुराणों और धर्म ग्रंथो के ज्ञाता हैं और हमे उनका सही अर्थ समझा सके और जीवन में उस ज्ञान को आचरण में कैसे लाया जाये इसका बोध करा सके| आम जन मानस इन्ही धर्माचार्यो के रूप में उस ईश्वर को देखने लगता हैं और पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से इनके हर उपदेश को जीवन का लक्ष्य मानकर, वैसा जीवन जीने लगता हैं | परन्तु विगत कुछ समय में आशाराम बापू नवयोवन की आशा-तृष्णा में, राम-रहीम रम, रूम, और रूप के भवंर जाल में, फलाहारी बाबा सेक्स लीला में, रामपाल हथियार और बन्दूको की नाल में लिप्त पाए गए और भक्तो को इस बात की ग्लानी हुई के वो धर्म के नाम पर ठगाए गए | बाबाओ के इस बवंडर का जोर अभी कम भी नही हुआ था कि कुछ दिनों पहले फिर 2 धर्माचार्यो का विचार और व्यवहार, धर्म के क्षेत्र में नया भूचाल ले आया हैं | इनमे से एक हैं श्री-श्री रविशंकर इन्हें इस वक्त के सबसे अत्याधुनिक धर्माचार्य कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगा क्यों कि श्री-श्री ने आदमी से आदमी या औरत से औरत के बीच बनने वाले सम्लेंगिक संबंधो को सहज मानवीय प्रवृत्ति मानकर उनका समर्थन किया हैं | और दूसरे, देश में राम कथा के सबसे बड़े वाचक श्री मोरारी बापू, जिन्होंने मानस श्मशान के कथा वाचन के दौरान श्मशान घाट में जाकर अपने एक भक्त की शादी मे उसे ना केवल आशीर्वाद दिया बल्कि उसके इस कदम की सराहना करते हुए आह्वान किया कि श्मशान एक पवित्र भूमि हैं इसलिए इस तरह के मांगलिक संस्कार यहाँ होना चाहिए ये बात अलग है कि जिस स्थान पर मनुष्य के मुक्ति का द्वार खुलता हैं वहा से गृहस्थी को आरंभ करना कितना शास्त्र संगत हैं, ये सोचना चाहिए | इसी विषय पर दो दिन पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी चिदाम्बरानंद सरस्वती के सोशल मीडिया पर 2 पोस्ट देखे जिसमे इन दोनों धर्माचार्यो के आचरण और धर्म को लेकर अपने व्याकरण पर स्वामीजी का आक्रोश नज़र आया और इसी आक्रोश को जानने के लिए हमने स्वामी जी से चर्चा की | प्रस्तुत हैं उनके अंश... सवाल- स्वामी जी, श्री-श्री और मोरारी बापू पर आपके कटाक्षो ने, आपकी पीड़ा तो बता दी पर पीड़ा का कारण क्या हैं इसे समझना चाहते हैं | स्वामीजी - ना सिर्फ मेरे लिए बल्कि ये सनातन धर्म के लिए सबसे पीड़ादायक क्षण हैं जब पुरातन धर्म के रक्षक ही अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नही करेंगे तो ये हमारी पीड़ा और विनाश दोनों का कारण बन रही हैं, आज हमारे पुरातन धर्म पर कोई भी ऊँगली उठाता है, बोलकर या भौक कर चला जाता है, तो उसका कारण ही ये तथाकथित लोग हैं जिनका सनातन धर्म से कोई लेना देना नही, ये बस अपनी ख्याति के लिए तटस्थ या सेक्युलर बन जाते हैं, और अपनी दुकानदारी चलते हैं. मनमाने ढंग से आचरण करने वाले लोग खुद को धर्मगुरु बताकर लोगो के बीच भ्रम फैला रहे हैं | वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धर्म के साथ इतनी विसंगतियाँ जुड़ गई हैं | नेता, कारोबारी और मीडिया ने अपने-अपने धर्मगुरु खड़े कर दिए हैं जिनका उद्देश्य धर्म का विस्तार नही इन लोगो का व्यापार हैं | और जब इनसे सौदा नही पटता हैं तो इन तथाकथित धर्माचार्यो की बुराई कर इन्हें जेल में डलवा देते हैं | और ये जितने भी जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं इनका हमारे धर्म, रीती-रिवाजों से कोई सम्बन्ध नही हैं 800 वर्ष पुराना हैं हमारा अखाड़ा, मगर ऐसे लोगो के बारे में तो हमने कभी नही सुना | सवाल- स्वामीजी, आज जहां तथाकथित बाबा जैसे राम-रहीम, रामपाल, फलाहारी जैसे लोग ईश्वर के बजाये हवस की पूजा में लिप्त रहते हैं, धर्म कम और हत्या-हथियार के सौदागर ज्यादा निकलते हैं ऐसे में यदि श्री-श्री समलेंगिकता पर अपना केवल विचार रखे तो आप को क्यों गलत लगता हैं ? स्वामीजी - मैं इस बात पर खुले रूप से उनका विरोध करता हूँ उन्हें धर्म और शास्त्रों का ज्ञान ही नही हैं | आज से कुछ वर्ष पूर्व तो श्री-श्री ने UPA के कार्यकाल में समलेंगिकता को लेकर बड़ा खतरनाक बयान दिया था. ये उस समय की बात हैं जब UPA सरकार समलेंगिकता से सम्बंधित एक धारा को समाप्त करने के लिए प्रयासरत थी | उस समय श्री-श्री ने कहा था समलेंगिकता कोई गलत नही, आखिर हरिहर द्वारा समलेंगिकता से ही भगवान अयप्पा की उत्पत्ति हुई हैं | श्री-श्री को इतना नही पता की भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में नारी का अवतार लिया था भगवान् शंकर और मोहिनी के मिलन से भगवान् अयप्पा की उत्पत्ति हुई थी | तो जब इन्हें पुरातन धर्म प्रसंगों की जानकारी ही नही तो कैसे खुद को धर्माचार्य मान लेते हैं | सवाल - स्वामीजी, हम तो उस देश में रहते हैं जहां भक्त शबरी के बुलाने पर राम जंगल गये उसे दर्शन दिए झूठे बैर तक खाए, भगवान कृष्ण ने एक दाना चावल खा कर अपना पेट भर लिया, अगर उस देश में भक्त के बुलावे पर कोई श्मशान घाट पर जाए तो विरोध क्यों ? स्वामीजी - विरोध जाने पर नही, शास्त्र विरुद्ध उनके आचरण पर हैं, चिता जो हैं हिन्दू धर्म के 16 संस्कारो में अंतिम संस्कार हैं, दूसरी बात शास्त्रों के अनुसार जिस धर्म के लिए जो स्थान नियत हैं वो वहीं होना चाहिए कहीं और नही | इसके अलावा चिता का नियम ये हैं कि यहाँ से निकलने के बाद तो स्नान किया जाता हैं तो वहां मांगलिक कार्य कैसे सम्भव हैं ? अब मोरारी बापू ने मानस श्मशान नामक कथा करी उससे प्रभावित होकर घनश्याम नमक भक्त श्मशान में शादी करने चला गया, और इसमें बापू को भी बुलाया और जब कोई पंडित मरघट में शादी के मंत्र पढ़ने को राज़ी नही हुआ, तो बापू ने अपने पंडितो से मंत्रोच्चार करवा कर शादी करवा दी | और बोला के मरघट पवित्र जगह हैं यहाँ शादियाँ होनी चाहिए | इन्हें पता ही नही शादी की अग्नि का आह्वान किया जाता हैं तब उसे साक्षी मानकर सात फेरे लिए जाते हैं चिता की अग्नि के नही, तो ये अधिकार इन्हें किसने दिया कि शास्त्रों को बदल दे | आज मानस श्मशान कथा सुनाई तो श्मशान में शादी, कल से मानस शौचालय कथा सुनायेगे तो कहेंगे की शौचालय में भोजन बनना चाहिए क्योकि शौच का अर्थ होता हैं शुद्धि| इन्हें ये ज्ञान ही नहीं हैं कि शास्त्रों ने हर कार्य के लिए निश्चित स्थानों की व्याख्या की हैं, भोजनालय में भोजन, शौचालय में शौच, शयनकक्ष में नींद, मंडप में विवाह और श्मशान में दाह संस्कार | तो जो बापू कर कर रहे हैं ये कोई क्रांति नही पागलपन हैं, शास्त्रों का अपमान हैं और इसे समाप्त करना जरूरी हैं| आप देखिये मुसलमानों में जो भी काम होता हैं उनकी शरियत के हिसाब से होता हैं उनके विरुद्ध नही | इसलिए वे धर्म के मामले में आज भी सुरक्षित हैं मगर हमारे यहाँ तो सब मनमानी करने में लगे हैं, मनमाने संत हैं बिना किसी उपाधि के | सवाल - तो आपके हिसाब से संत की परिभाषा क्या हैं ? स्वामीजी - शास्त्रों में इसका पूरा वर्णन हैं और जो उन मापदण्डो पर खरा उतरता हैं वही संत हैं | यही कारण हैं कि मैं 29 दिसम्बर से 1 जनवरी तक 50 से ज्यादा महामंडलेश्वरो को एक स्थान पर लाकर दुनिया को दिखाना चाहता हूँ, कि देखिये वास्तविक सनातन धर्म क्या हैं, संत कौन हैं | जब तक सच्चे धर्माचार्य सामने नही आएंगे तब तक झूठे ही राज़ करते रहेंगे | सवाल- स्वामीजी, मेरी एक जिज्ञासा हैं जैसा आपने कहा कि शास्त्रों के अनुसार संत कर्म करने वालो को बताया गया हैं तो, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी जिन्हें योगी बोला जाता हैं, भगवा वस्त्रधारी हैं तो क्या शास्त्र किसी विरक्त या योगी को राजनीति करने की अनुमति देता हैं | स्वामीजी- जी ऐसा बताया गया हैं कि जब कभी धर्म का अनादर हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में व्यवस्था को अपने हाथ में लिया जा सकता हैं | सवाल - तो स्वामी जी आज तो धर्म की सबसे बड़ी हानि हमारे देश में गऊ हत्या के रूप में हो रही हैं और उसमे भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में तो योगी जी ने केवल अवैध क़त्लखानों को ही बंद करने का आदेश क्यों दिया, सभी क़त्लखानों को बंद क्यों नही करवाया | क्योंकि शास्त्रों के अनुसार तो, ये उनका परम कर्तव्य हैं | स्वामीजी - उत्तर प्रदेश में वैसे ही गऊ हत्या प्रतिबंधित हैं अखलाख की हत्या के समय भी इसी मुद्दे पर देश में बहस छिड़ी थी लेकिन ये योगी जी कि ही पहल हैं उन्होंने अवैध क़त्लखाने बंद करवाए हैं और आगे भी वे अच्छे कार्य जनता और देश हित में करेंगे इसलिए आपको और हमे उनका सहयोग करना चाहिए | और इसके बाद स्वामीजी ने वार्ता को समाप्त कर दिया और मैं, ये सोचता रहा शास्त्रों की व्याख्या करने वाले ही जब शास्त्रों, मान्यताओ, परम्पराओ और धर्म को जलाने लगे तो क्या फिर से भगवान् को खम्बा फाड़ कर प्रगट होना पड़ेगा | एक आम इंसान तो शास्त्रों के श्लोको की व्याख्या को समझ नही सकता तो फिर कैसे एक सच्चे मार्गदर्शक संत को तलाशा जाए यही मेरी जिज्ञासा हैं|