​आखिर कोरोना वायरस के खतरे में कौन ज्यादा, कौन कम

कोरोना वायरस ने भारतीय व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. 21 दिनों के लिए लोग घरों में कैद हो गए है. लेकिन इस वायरस को लेकर मृत्यु दर पर सवाल खड़े होने लगे हैं. भारत में यह 2 फीसद के आसपास है. अलग-अलग देश अपने-अपने तरीके से कोरोना मृत्यु दर को परिभाषित कर रहे हैं. अगर ब्रिटेन का उदाहरण लें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्रिटेन की मृत्यु दर 5 फीसद है जबकि वैश्विक स्तर पर मृत्यु दर 4 फीसद ही है. लेकिन ब्रिटेन का दावा है कि उनके यहां की मृत्यु दर 0.5 से एक फीसद तक ही है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कोरोना के परीक्षण का पैमाना भी देशवार भिन्न है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोई अधिक संख्या में मरीजों का परीक्षण कर रहा है तो कोई सीमित. ऐसे में मृत्यु दर का सटीक आकलन भी प्रभावित होता है. इतना ही नहीं मृत्यु दर उम्र और सामान्य स्वास्थ्य जैसे कारकों पर भी निर्भर करती है.

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वे बुजुर्ग जो अस्वस्थ हैं और कोरोना पॉजीटिव भी है, उनके लिए खतरा ज्यादा है. इंपीरियल कॉलेज लंदन के हालिया अध्ययन के मुताबिक जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक है उनमें मृत्यु दर की आशंका 10 गुना बढ़ जाती है जबकि 40 से कम उम्र वालों में बहुत कम. हालांकि ब्रिटेन के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार प्रो. क्रिस व्हिटी कहते हैं कि भले ही बुजुर्गों की मृत्यु दर ज्यादा है, इसका मतलब यह नहीं कि युवाओं के लिए यह वायरस निस्तेज है. इसलिए यह नहीं कह सकते कि केवल उम्र ही संक्रमण के जोखिम को निर्धारित करता है. चीन के 44 हजार केसों के अध्ययन के बाद पता चलता है कि जिन कोरोनाग्रस्त को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी या सांस रोग था, उनमें मृत्यु की आशंका पांच गुना ज्यादा थीं.

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