माता-पिता

माँ घर का गौरव,

तो पिता घर का अस्तित्व होते है।

माँ के पास अश्रुधारा,

तो पिता के पास संयम होता है ।

दोनों समय का भोजन माँ बनाती है,

तो जीवन भर भोजन की व्यवस्था करने वाले पिता है।

कभी लगी जो ठोकर या चोट तो 

" ओह माँ " ही मुँह से निकलता है,

लेकिन रास्ता पार करते कोई ट्रक पास 

आकर ब्रेक लगाये तो "बाप रे" मुँह से निकलता है।

क्योंकि छोटे छोटे संकटो के लिए माँ है,

पर बड़े संकट आने पर पिता ही याद आते है ।

पिता की मौजदगी सूरज की तरह होती है, 

सूरज गरम जरुर होता है और अगर न हो तो अँधेरा छा जाता है ।

पिता एक वट वृक्ष है

जिसकी शीतल छांव में सम्पूर्ण परिवार सुख से रहता है ।

और अंत में पिता पर लिखी 

स्व. पं. ओम व्यास 'ओम' की एक सुन्दर कविता

पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है, पिता, पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है, पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है, पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है, पिता, पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है, पिता, पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है, पिता, पिता रोटी है, कपडा है, मकान है, पिता, पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है, पिता, पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है, पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है, पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं, पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं, पिता से परिवार में प्रतिपल राग है, पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है, पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है, पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है, पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है, पिता, पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ति है, पिता, पिता एक जीवन को जीवन का दान है, पिता, पिता दुनिया दिखाने का अहसान है, पिता, पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है, पिता नहीं तो बचपन अनाथ है, पिता नहीं तो बचपन अनाथ है, तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो, पिता का अपमान नहीं उन पर अभिमान करो,

क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,

और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता,

विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,

माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,

विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,

यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,

वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,

क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं।

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