माता शीतला की आराधना और शीतलाष्टक

माता शीतला का धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा आराधना करने से न केवल रोगों का नाश हो जाता है तो वहीं सामान्य पूजा अर्चना से ही माता शीतला अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी कर देती है। माता शीतला की सामान्य आराधना के साथ ही शीतलाष्टक का पाठ भी नित्य करना चाहिए, इस पाठ का मूल यहां दिया जा रहा है।

शीतलाष्टक-स्तोत्र - ।।ईश्वर उवाच।। वन्देऽहं शीतलां-देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्। मार्जनी-कलशोपेतां, शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ।।१।। वन्देऽहं शीतलां-देवीं, सर्व-रोग-भयापहाम्। यामासाद्य निवर्तन्ते, विस्फोटक-भयं महत् ।।२।। शीतले शीतले चेति, यो ब्रूयाद् दाह-पीडितः। विस्फोटक-भयं घोरं, क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ।।३।। यस्त्वामुदक-मध्ये तु, ध्यात्वा पूजयते नरः। विस्फोटक-भयं घोरं, गृहे तस्य न जायते ।।४।। शीतले ! ज्वर-दग्धस्य पूति-गन्ध-युतस्य च। प्रणष्ट-चक्षुषां पुंसां , त्वामाहुः जीवनौषधम् ।।५।। शीतले ! तनुजान् रोगान्, नृणां हरसि दुस्त्यजान् । विस्फोटक-विदीर्णानां, त्वमेकाऽमृत-वर्षिणी ।।६।। गल-गण्ड-ग्रहा-रोगा, ये चान्ये दारुणा नृणाम्। त्वदनुध्यान-मात्रेण, शीतले! यान्ति सङ्क्षयम् ।।७।। न मन्त्रो नौषधं तस्य, पाप-रोगस्य विद्यते। त्वामेकां शीतले! धात्री, नान्यां पश्यामि देवताम् ।।८।।

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