मुंबई. बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद बेंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुये कहा है कि एक बहू को अपने मरे हुए पति के माता-पिता को मैनटेनेंस के लिए भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है. न्यायमूर्ति किशोर संत की एकल पीठ ने 12 अप्रैल को एक याचिका पर यह फैसला सुनाया है. दरअसल 30 साल की महिला शोभा तिडके ने लातूर की एक लोअर कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. बता दें कि, लोअर कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि महिला को रखऱखाव के लिए अपने मरे हुए पति के माता-पिता को भुगतान करना होगा. जिसके बाद कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर के सेक्सन 125 के अंतर्गत हाई कोर्ट ने कहा कि सास और ससुर दिए गए सेक्शन में लिस्टेड नहीं है. बता दें कि शोभा के पति महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में नौकरी करते थे. बाद में उनका निधन हो गया था. जिसके बाद उनकी पत्नी शोभा ने सरकारी हॉस्पिटल जेजे हॉस्पिटल मुंबई में नौकरी करना आरम्भ किया. 68 वर्षीय किशन राव टिडके और 60 वर्षीय कांताबाई तिड़के, शोभा के सास-ससुर हैं. इन दोनों ने दावा किया कि उनके पास आमदनी का कोई और माध्यम नहीं है. इसी कारण उन्होंने अपने मैनटेनेंस के लिए पैसों की मांग की थी. वहीं महिला ने अदालत में दावा किया कि उनके सास-ससुर के पास गांव में भूमि और अपना एक घर है, और पति के निधन के बाद उन्हें ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से 1.88 लाख रुपये भी दिए गए थे. इस दलील के बाद न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जो नौकरी शोभा कर रही हैं, वह अनुकम्पा में नहीं दी गई है. अदालत ने इस दौरान यह भी दोहराया कि मृतक के माता-पिता के पास गांव में घर और भूमि भी है, और उन्हें उनके बेटे की मौत के बाद ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से भी मुआवजा प्राप्त हुआ है. उच्च न्यायालय ने इन सभी दलीलों को मानते हुए कहा कि माता-पिता के पास कोई ठोस आधार नहीं है कि वह महिला से मैंनटेनेंस की डिमांड करें. रामनवमी हिंसा पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हिन्दू संगठन की याचिका ख़ारिज शराबबंदी और नितीश कुमार को लेकर जीतनराम मांझी ने दिया बड़ा बयान केजरीवाल सरकार की याचिका पर दिल्ली के LG को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, जानिए क्या है मामला ?