पर्यावरण को बचाने के लिए यूं तो समय-समय पर कई आंदोलन किये गए. इसमें से कुछ आंदोलन तो आज भी याद किये जाते हैं. ऐसा ही एक आंदोलन है चिपको आंदोलन. आइये जानते हैं कि आखिर ये चपको आंदोलन है क्या. चिपको आन्दोलन की सबसे मुख्य बात ये है कि इसमें महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया था. इस आन्दोलन को भारत के जाने माने पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी ने शुरू किया था. चिपको आंदोलन की शुरुआत वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने के लिए की गई थी. 1972 में बाहरी ठेकेदारों द्वारा जंगलों की कटाई का चमोली जिले में जगह-जगह विरोध शुरू हुआ. इसी दौर में घनश्याम रतूड़ी ने कुछ जनगीत लिखे जो बेहद चर्चित हुए और हर जगह विरोध के स्वर बन गए. प्रदेश भर में महिलाओं के विकेंद्रित नेतृत्व में आंदोलन ने जोर पकड़ना शुरू किया. उत्तराखंड में 70 के दशक में शुरू हुए चिपको आंदोलन के बारे में वंदना शिवा ने एक किताब भी लिखी है. आज भी पर्यावण को बचने के लिए हमे बहुत कुछ करने कि आवश्यकता है. हम अक्सर ये देखते हैं कि निर्माणों कि दुहाई देकर पेड़ों को यूँ ही काट दिया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस 2018 : इस साल भारत करेगा विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी पेड़ों को भी प्राप्त होता है चरम सुख, जानिए कैसे दुनिया का सबसे पुराना पेड़ जो बार-बार उग जाता है