देश में बैंक्स के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं। लोग अपने पुराने नोट्स को नए नोट से बदलवाने का प्रयास कर रहे हैं हालांकि सरकार द्वारा और रिज़र्व बैंक के प्रयासों के चलते लोगों को कुछ सुविधाऐं मिली हैं। अब तो लोग चाय के ठियों पर, बस में सफर करते हुए, दवाईयां खरीदते समय, पान काॅर्नर पर 2000 रूपए के नए नोट की बात करते हैं। ऐसे में देश का महत्वपूर्ण सदन संसद क्यों नहीं गूंजेगा। यहां केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए 500 रूपए और 1000 रूपए के नोट बंदी के नियम को विपक्ष द्वारा गलत बताया जा रहा है। विपक्ष चर्चा की बात कर रहा है। मगर चर्चा नहीं कर रहा। सत्तापक्ष अपनी बात रख रहा है। सदन में गतिरोध की स्थिति है। ऐसे में महत्वपूर्ण मसौदों पर चर्चा नहीं हो पाई है। आप की जानकारी में लाना बेहतर है कि सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल की नियुक्ति पर केंद्र सरकार से सवाल किए थे और पूछा था कि इसमें देरी क्यों की गई है सरकार का सीधा सा जवाब था कि अभी तक इसे संसद में रखा नहीं जा सका है। यदि इसी तरह से बहस चलती रही और मानसून सत्र, बजट सत्र और अब शीतकालीन सत्र आगे भी बिना किसी विधान को पारित किए गुजरते रहे तो फिर संसद में काम किस तरह से होगा। इस मामले में प्रबुद्धवर्ग चिंतित है। आम आदमी तो बैंक की कतार में लगा है लेकिन प्रबुद्ध वर्ग का मानना है कि विपक्ष को इस मामले पर हंगामे का गतिरोध कर सरकार के साथ मिलकर प्रायौगिक उपायों पर काम करना होगा। यही यथार्थवादिता होगी। आम आदमी सार्वजनिक बैंक्स में लगे एलईडी टेलिविज़न पर जब समाचार चैनल देखता है और संसद की कार्रवाई का प्रसारण देखता है तो उसे बेहद आश्चर्य होता है कि सदन स्थगन के अलावा सांसदों के पास उनकी परेशानी हल करने का कोई उपाय नहीं है ऐसे में वह निराश हो जाता है।