Muharram 2019 : मुहर्रम के मौके पढ़ें ये शायरी..

इस्लामी नए साल 1 सितम्बर से शुरू हो चुका है. आपको बता दें इसे मुहर्रम के नाम से भी जानते हैं. मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन है. मुहर्रम एक ऐसा महिना है, जिसे मुस्लिम समाज के लोग इमाम हुसैन की शहादत के गम में मनाते है. मुहर्रम के दिन इमाम हुसैन और उसके भाई हसन का ताजिया निकाल कर शौक मनाया जाता है, ये दिन मुहर्रम महीने का 10वाँ दिन होता है. इन दिनों ये लोग किसी प्रकार का जश्न नहीं मनाते बल्कि मातम में डूबे होते हैं.  ये हिजरी संवत का प्रथम महिना है जिसे इस्लामिक नया साल भी कहते है. ये दिन मुहर्रम महीने का 10वाँ दिन होता है. मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है क्योंकि इस्लाम का कैलेंडर एक लूनर कैलेंडर होता है. मोहर्रम माह से ही इस्लामिक कैलेंडर की शुरूआत होती है. 

कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी, खून तो बहा था लेकिन कुर्बानी हौसलों की उड़ान दिखा गयी.

कर्बला की कहानी में कत्लेआम था लेकिन हौसलों के आगे हर कोई गुलाम था, खुदा के बन्दे ने शहीद की कुर्बानी दी इसलिए उसका नाम पैगाम बना.

क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने, सजदे में जा कर सर कटाया हुसैन ने, नेजे पे सिर था और जुबां पर अय्यातें, कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने.

गुरूर टूट गया कोई मर्तबा ना मिला, सितम के बाद भी कुछ हासिल जफा ना मिला, सिर-ऐ-हुसैन मिला है यजीद को लेकिन शिकस्त यह है की फिर भी झुका हुआ ना मिला.

जन्नत की आरजू में कहा जा रहे है लोग, जन्नत तो कर्बला में खरीदी हुसैन ने, दुनिया-ओ-आखरत में रहना हो चैन सूकून से तो जीना अली से सीखे और मरना हुसैन से.

मुहर्रम की शायरी करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने, ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने, लहू जो बह गया कर्बला में, उनके मकसद को समझा तो कोई बात बने.   सिर गैर के आगे न झुकाने वाला और नेजे पर भी कुरान सुनाने वाला, इस्लाम से क्या पूछते हो कौन है हुसैन, हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला.

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है, ये आसमान में उदास बादल तेरी मोहब्बत में रो रहा है, सबा भी जो गुजरे कर्बला से तो  उसे कहता है अर्थ वाला, तू धीरे गूजर यहाँ मेरा हुसैन सो रहा है. 

Islamic New Year : 1 सितम्बर से शुरू हो सकता है इस्लामिक नया साल

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