इन दिनों पूरे देश में राम जन्मभूमि का मुद्दा छाया हुआ है। अयोध्या में राम मंदिर बनेगा या मस्जिद का निर्माण होगा, इसे लेकर सियासत जारी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने रामजन्मभूमि मामले पर सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाल दी है। रामजन्मभूमि को लेकर कई आंदोलन हुए और एक आंदोलन ऐसा था, जिसमें उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने एक फैसला ऐसा लिया, जिससे वह मुल्ला मुलायम कहे जाने लगे। दरअसल, आज से 28 साल पहले राम मंदिर निर्माण को लेकर साधु संत आयोध्या जा रहे थे और उनके श्रद्धालुओं की भीड़ भी अयोध्या पहुंच रही थी। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था। इसके चलते श्रीराम के भक्तों को अयोध्या में जाने नहीं दिया गया। पुलिस ने बाबरी मस्जिद के आस—पास बैरिकेडिंग कर रही थी। इस सबको देखते हुए कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई और 30 अक्टूबर 1990 को पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दीं, जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई। इससे गुस्साए कारसेवक हजारों की तादाद में 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में हनुमान गढ़ी तक पहुंच गए। यह जगह बाबरी मस्जिद के करीब थी। जैसे ही कारसेवक वहां पहुंचे पुलिस ने उन पर ताबड़तोड़ गोलीबारी कर दी, जिसमें करीब डेढ़ दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। इन कासेवकों का नेतृत्व उमा भारती, अशोक सिंघल और स्वामी वामदेवी कर रहे थे। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने इन कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। कारसेवकों पर इस तरह गोली चलाने का आदेश देने के कारण ही मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम कहा जाने लगा। उन्हें मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए जाना जाने लगा और हिंदुओं का विरोधी समझा जाने लगा। हालांकि इस घटना के लगभग 23 साल बाद मुलायम सिंह ने इसे अपनी बड़ी भूल बताया, लेकिन उसके दाग आज तक उनके दामन पर लगे हैं और आज भी मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम कहा जाता है। पुलिस के इस तरह गोली चलाने की खूब निंदा हुई और इसके परिणाम स्वरूप दो साल बाद नवंबर 1992 में उग्र हिंदूनेताओं की अगुवाई में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया। इसके बाद आए चुनावों में मुलायम सिंह बुरी तरह हार गए थे। जानकारी और भी क्या अयोध्या मसले पर विधेयक लाएगी बीजेपी? शिवराज बने खुद के लिए मुसीबत!! सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति देने वाला अनुच्छेद 32 आखिर है क्या?