कुमार विश्वास ने कभी कहा है कि जब भी सामने से तेज स्पीड से एक ट्रक हमारी ओर आता हुआ दिखाई दे तो सबसे पहले डर नाभि में महसूस होता है, वो डर न आँखों में होता है न लबों पर, वो सिर्फ नाभि में ही होता है ऐसा इसलिए कि माँ ने जिस नाभि से 9 महीने पेट में पालकर हमें जीवन दिया है उसी नाभि से वो जीवन भी वापस लौट जाएगा, ऐसा ही कुछ मुनव्वर राना साहब भी है जिन्होंने 'माँ' को शायरी में ढालकर सदियों के लिए एक ऐसा नेक काम किया है जिसे शायद ही किसी ने करने की हिम्मत जुटाई होगी. "दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा" "ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया" "इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है" "ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे" "अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है" -मुनव्वर राना