कहीं क्या खूब लिखा है, 'माँ के पैरों में जन्नत होती है' खुदा का दिया हुआ एक अनमोल तोहफा अगर कोई जमी पर है तो वो माँ है, माँ के प्रति ममता, दुलार और प्यार को शब्दों में ढालना दुनिया के तमाम मुश्किल कामों में से एक है. माँ के लिए आप क्या लिख सकते है, एक ऐसा विषय जिसका कोई अंत नहीं है फिर उसे कैसे लिखा जा सकता है, और अगर लिखा भी जाए तो आप लिखते चले जाओ आपकी ज़िंदगी खत्म हो जाएगी लेकिन माँ पर लिखना शायद कभी खत्म न हो. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में माँ के बारे में अगर किसी ने दिल से इतनी गहराई से लिखा है तो वो शख्स है मुनव्वर राणा साहब... आपके लिए पेश है 'माँ' पर लिखे मुनव्वर राना साहब के कुछ जज्बात शायरी में “मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए” "मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना" "लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती" "अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है" "जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा" -मुनव्वर राना