'इतवार का दिन और मधुबाला की फ़िल्म' अगर देखने को मिल जाये तो क्या कहने.वेसे तो "मेरा पहला प्यार थी मधुबाला". अब आप सोच रहे होंगे की कहा मैं 90 के दशक मे पेदा हुआ 23 साल का लडका और कहा 14 फरवरी 1933 को देश का दिल कहे जाने वाले दिल्ली मे जन्मी "मधुबाला", जो कि लाखो दिलो की रानी रही, लेकिन माफ़ किजियेगा प्यार किसी उम्र, किसी रुतबे का मोह्तज नही होता. शुरुआत मे तो मैं मधुबाला को सिर्फ पसंद करता था लेकिन फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म देखने के बाद दिल से बस यही पुकार निकली जब प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नही की चुप चुप आहे भरना क्या, पर ये सिर्फ मेरा हाल नही था. अजाद हिन्दुस्तान का हर नौजवान मधुबाला के इश्क मे पड चुका था. पर मेरी बात कुछ और थी साहब. मैं तो इस एक लडकी भिगी भागी सी, के लिए अपनी जान तक दे सकता था, लेकिन इस मुमताज के लिये मैं अजनबी था.पर मधुबाला के नाम पल पल आहे भरते हुए "चलती का नाम गाडी" इस जिंदगी को चला रहा था और ऐसा मैं करता भी क्यो ना, प्यार की इस मुरत का जन्म भी तो प्यार वाले दिन यानी विलेनटाइन वाले दिन हुआ था. अनारकली बन मधुबाला ने जहाँ लाखो सलीमो को मोहब्बत का सही अर्थ बताया. वही बता दिया की सादगी और खूबसूरत अदाकारी से कैसे दिलो पर राज किया जाता है, लेकिन मेरे इस प्यार मधुबाला को तो कोई और ही पसन्द था. जी हाँ सुना तो ये है कि मेरी प्यारी अनारकली ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार की दीवानी थी. जी हाँ प्यार की इन्तहा इस कदर थी कि मधुबाला पहली मुलाकात में दिलीप साहब की दीवानी हो गई थी. और दीवानगी इस कदर चढ़ी, जिसका उदहारण हमें फिल्म मुग़ल-ए-आज़म से नजर आ ही जाता है. दीवानगी का आलम ऐसा था कि मधुबाला दिलीप कुमार से शादी करना चाहती थी, लेकिन हमारे इस सहजादे सलीम ने अपनी अनारकली को न कह दिया और तन्हाइयो में टूटे हुए दिल को लिए मुमताज उर्फ़ मधुबाला का इस जिंदगी की राह में प्यार भरे नगमे गाने वाले सिंगर किशोर कुमार ने हमसफ़र बन साथ दिया, और एक बार फिर मेरा प्यार अधूरा रह गया. हालाँकि मेरा प्यार मधुबाला से सिल्वर स्क्रीन तक ही सिमित नहीं था. शुरुआती दिनों में, मैं अपनी स्कुल टीचर को ही मधुबाला मानता था और मानता भी क्यों न वो हूबहू मधुबाला जैसी नजर आती थी. वही मदहोश कर देने वाली आंखे. वही घुंगराले बाल, वही दिलकश अदाएं. मुझे तो लगता था कि वही मधुबाला है जो फिल्मो में काम करने के साथ मुझे पढ़ाती भी है. अब यारो इसमे मेरी कोई गलती नहीं. मैं उस समय 6th क्लास में पढ़ने वाला एक छोटा सा बच्चा था. जिसे प्यार और लगाव में फर्क ही कहा पता था. मधुबाला उस समय मेरी जान हुआ करती थी. उनकी दिलकश अदायगी और खूबसूरत हुस्न का दीवाना अगर कोई न हो सके तो वो इंसान ही कहां. तारीफो को यही विराम देते हुए अंत में, मैं अपनी प्यारी मधुबाला के लिए बस यही कहूंगा कि कविताओ में हरिवंश राय बच्चन की "मधुशाला" और फिल्मो में "मधुबाला" अगर न होती तो शायद इश्क, आशिकी और प्यार की ठीक परिभाषा नहीं दी जा सकती थी.