दिल्ली के इस 1600 साल पुराने लौह स्तंभ के है चौका देने वाले रहस्य

दिल्ली का एतिहासिक कुतुब मीनार तो आप सभी ने देखा ही होगा, जिसे ईंट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार माना जाता है. इसी कुतुब मीनार के पास ही एक विशाल स्तंभ भी मौजूद है, जिसे 'लौह स्तंभ' कहा जाता है. इसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे, लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है और यह स्तंभ रहस्यों से भरा हुआ भी है. आज हम इसी स्तंभ के बारें में बताने जा रहे है. दरअसल, माना जाता है कि यह स्तंभ 1600 साल से भी पुराना है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह शुद्ध लोहे से बना हुआ है और सदियों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है, लेकिन आजतक इसपर कभी जंग नहीं लगा. यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है.  

बता दें की इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375-412) ने कराया है और इसका पता उसपर लिखे लेख से चलता है, जो गुप्त शैली का है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका निर्माण उससे बहुत पहले किया गया था, संभवत: 912 ईसा पूर्व में. इसके अलावा कुछ इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि यह स्तंभ सम्राट अशोक का है, जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था.   इस स्तंभ पर संस्कृत में जो लेख खुदा हुआ है, उसके अनुसार इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था. माना जाता है कि मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे खड़ा किया गया था, जिसे 1050 ईस्वी में तोमर वंश के राजा और दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल ने दिल्ली लाया.       शुद्ध लोहे से बने इस स्तंभ की ऊंचाई सात मीटर से भी ज्यादा है जबकि वजन 6000 किलो से भी अधिक है. रासायनिक परीक्षण से पता चला है कि इस स्तंभ का निर्माण गर्म लोहे के 20-30 किलो के कई टुकड़ों को जोड़ कर किया गया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि करीब 1600 साल पहले गर्म लोहे के टुकड़ों को जोड़ने की तकनीक क्या इतनी विकसित थी, क्योंकि उन टुकड़ों को इस तरीके से जोड़ा गया है कि पूरे स्तंभ में एक भी जोड़ नजर नहीं आता है. यह सच में एक बड़ा रहस्य है.   इस लौह स्तंभ में सबसे आश्चर्य की बात यह है की इसमें जंग का न लगना. माना जाता है कि स्तंभ को बनाते समय इसमें फास्फोरस की मात्रा अधिक मिलाई गई थी, इसीलिए इसमें आज तक जंग नहीं लगा. दरअसल, फास्फोरस से जंग लगी वस्तुओं को साफ किया जाता है, क्योंकि जंग इसमें घुल जाता है. लेकिन सोचने की बात ये है कि फास्फोरस की खोज तो 1669 ईस्वी में हैम्बुर्ग के व्यापारी हेनिंग ब्रांड ने की थी जबकि स्तंभ का निर्माण उससे करीब 1200 साल पहले किया गया था. तो क्या उस वक्त के लोगों को फास्फोरस के बारे में पता था? अगर हां, तो इसके बारे में इतिहास की किसी भी किताब में कोई जिक्र क्यों नहीं मिलता? ये सारे सवाल स्तंभ के रहस्य को और गहरा देते हैं.

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