नई दिल्ली: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 68वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस मौके पर पीएम मोदी वाराणसी में स्कूली और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के साथ अपना जन्मदिन मनाएंगे. अपने जन्मदिन पर पीएम मोदी रिटर्न गिफ्ट में करीब छह सौ करोड़ की परियोजना का लोकार्पण और शिलान्यास करेंगे और लोगों से जन्मदिन की खुशियां साझा करेंगे. पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय और चर्चित राजनेता हैं. नरेंद्र मोदी को समझने के लिए उनकी कविताओं से बेहतर और कुछ नहीं है. ऐसे में आज हम पीएम मोदी के जन्मदिन के इस विशेष अवसर पर उनकी अब तक की सबसे बेहतरीन कविताएं लेकर आए हैं. ये सभी कविताएं मूल रूप से गुजराती भाषा में लिखी गई है और ये उनका हिंदी अनुवाद है. 'जलते गए, जलाते गए' आंधियों के बीच जल चुके कभी बुझ चुके कुछ दीप थे. और भी कुछ दीप थे तिमिर से लोहा लिए थे बहाते-बहाते प्रकाश यों तो अंधकार में समा गए थे, पर एक दीप जो आप थे जलते गए, जलाते-जलाते. आंधी आए तिमिर छाए फिर भी जले, जलाते-जलाते. अंधकार से जूझता था संकल्प जो उर में भरा था सूरज आने तक जलना था बस, जलते गए, जलाते-जलाते. जो जले थे जो जले हैं जो जल रहे हैं बन किरण फहरा रहे हैं रोशनी बरसा रहे हैं तभी तो सिद्धियों का सूरज निकल पड़ा है चहुंओर रोशनी-ही-रोशनी समाया वह दीप जो. वसंत का आगमन अंत में आरंभ है, आरंभ में है अंत, हिय में पतझर के कूजता वसंत. सोलह बरस की वय, कहीं कोयल की लय, किस पर है उछल रहा पलाश का प्रणय? लगता हो रंक भले, भीतर श्रीमंत हिय में पतझर के कूजता वसंत. किसकी शादी है, आज यहाँ बन में? खिल रहे, रस-रंग वृक्षों के तन में देने को आशीष आते हैं संत, हिय में पतझर के कूजता वसंत. पतंग पतंग... मेरे लिए उर्ध्यगति का उत्सव, मेरा सूर्य की ओर प्रयाण. पतंग... मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव, मेरी डोर मेरे हाथ में पदचिन्ह पृथ्वी पर, आकाश में, विहंगम दृश्य ऐसा. मेरी पतंग... अनेक पतंगों के बीच, मेरी पतंग उलझती नहीं, वृक्षों की डालियों में फंसती नहीं. पतंग... मानो मेरा गायत्री मंत्र, धनवान हो या रंक, सभी को, कटी पतंग एकत्र करने का आनंद होता है, बहुत ही अनोखा आनंद. कटी पतंग के पास, आकाश का अनुभव है, हवा की गति और दिशा का ज्ञान है. स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है, वहां कुछ क्षण रुकी है, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. पतंग... मेरा सूर्य की ओर प्रयाण, पतंग का जीवन उसकी डोर में है. पतंग का आराध्य (शिव) व्योम (आकाश) में है, पतंग की डोर मेरे हाथ में है, मेरी डोर शिव जी के हाथ में है. जीवन रूपी पतंग के लिए शिव जी हिमालय में बैठे हैं. पतंग (जीवन) के सपने मानव से ऊंचे. पतंग उड़ती है, शिव जी के आसपास, मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा, उसको (डोर) सुलझाने में लगा रहता है. सनातन मौसम अभी तो मुझे आश्चर्य होता है कि कहाँ से फूटता है यह शब्दों का झरना कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज की आँख ऊँची होती है तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है . इतने सारे शब्दों के बीच मैं बचाता हूँ अपना एकांत तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूँ आनंद किसी सनातन मौसम का. तस्वीर के उस पार तुम मुझे मेरी तस्वीर या पोस्टर में ढूढ़ने की व्यर्थ कोशिश मत करो मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूँ अपने आत्मविश्वास में अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में। तुम मुझे मेरे काम से ही जानो तुम मुझे छवि में नहीं लेकिन पसीने की महक में पाओ योजना के विस्तार की महक में ठहरो मेरी आवाज की गूँज से पहचानो मेरी आँख में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है पीएम मोदी के जन्मदिन पर इसरो ने दिया पुरे देश को यह तोहफा जन्मदिन विशेष : देश भर की हस्तियों ने इस तरह दी पीएम मोदी को बधाई EDITORIAL: मोदी की झाड़ू से कितना साफ हुआ देश?