नाथूराम गोडसे को आज ही हुई थी फांसी, पढ़ें गांधी के हत्यारे का अंतिम बयान

नई दिल्ली: आज (15 नवंबर 1949) देश की आज़ादी में अहम योगदान देने वाले मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) की निर्मम हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी। गांधी को अपना प्रेरणास्त्रोत मानने वाले गोडसे को गांधी हत्या के आरोप में ही फांसी हुई थी। हालांकि, जब नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की, उस समय देश का हर वर्ग, हर धर्म-मजहब का शख्स उनसे नफरत करने लग गया था, किन्तु जिन लोगों ने गोडसे का अंतिम भाषण सुना, वो अब भी इस हत्या के लिए गोडसे को कसूरवार नहीं मानते। गांधी हत्या मामले में सुनवाई कर गोडसे के खिलाफ फैसला सुनाने वाले जस्टिस जीडी खोसला ने अपनी क़िताब 'द मर्डर ऑफ़ द महात्मा' में इस संबंध में एक बेहद अहम टिप्पणी की थी। 

उस टिप्पणी में जस्टिस खोसला ने कहा था कि उस वक़्त कोर्ट में मौज़ूद जनता को यदि जज का दर्ज़ा देकर उनसे फ़ैसला सुनाने को कहा जाता, तो निश्चय ही गोडसे भारी बहुमत से गांधी की हत्या के आरोप से 'निर्दोष' करार दे दिए जाते। यह वाक़या 17 मई 1949 का है, जब गोडसे को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। सजा सुनाए जाने से पहले गोडसे ने अपना अंतिम भाषण दिया था, जिसमे उन्होंने गांधी जी की हत्या करने पर अपना पक्ष रखा था। आज हम आपको नाथूराम गोडसे के उसी अंतिम भाषण के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्होंने जज के समक्ष दिया था। जिसे सुनकर अदालत में बैठे प्रत्येक शख्स की आंखें नम हो गई थी। 

नाथूराम गोडसे का कोर्ट में जज के सामने आखिरी बयान:-

'सम्मान, कर्तव्य तथा अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है। मैं कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत अथवा अन्याय पूर्ण भी हो सकता है। प्रतिरोध करने और अगर संभव हो तो ऐसे दुश्मन को बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक एवं नैतिक कर्तव्य मानता हूं। मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के समक्ष आत्मसर्पण कर दे तथा उनकी सनक, मनमानी और आदिम बर्ताव के स्वर में स्वर मिलाये या उनके बिना काम चलाए। वे अकेले ही हर वस्तु तथा व्यक्ति के निर्णायक थे।'

महात्मा गांधी अपने लिए जूरी एवं जज दोनों थे। गांधी जी ने मुस्लिमों को प्रसन्न करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य तथा सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गांधी जी के सारे परीक्षण सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओ की कीमत पर किए जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति एवं समाज वाद का दंभ भरा करती थी। उसी ने गुप्त तौर पर बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को कबूल कर लिया तथा जिन्ना के समक्ष नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया। मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की वजह से भारत माता के टुकड़े कर दिए गए तथा 15 अगस्त 1947 के पश्चात् देश का एक तिहाई हिस्सा हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ-साथ एक धर्म के आधार पर अलग प्रदेश बना दिया गया। इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई आजादी कहते है और किसका बलिदान?

वही जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गांधी जी के मंजूरी से इस देश को काट डाला, जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है, तो मेरा मस्तिष्क खतरनाक क्रोध से भर गया। मैं साहस पूर्वक बोलता हूँ कि गांधी अपने कर्तव्य में नाकाम हो गए। उन्होंने खुद को पाकिस्तान का पिता होना साबित किया। मैं बोलता हूं की मेरी गोलियां एक ऐसे शख्स पर चलाई गई थी, जिसकी नीतियों एवं कार्यों से करोड़ों हिन्दुओं को सिर्फ बर्बादी एवं विनाश ही प्राप्त हुआ। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी, जिसके द्वारा उस दोषी को सजा दिलाई जा सके, इसलिए मैंने इस घातक मार्ग का अनुसरण किया। मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूंगा, जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है। मुझे कोई शंका नहीं है कि इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे काम का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका उचित मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन मत करना।'

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