दुनिया का सेक्युलर देश भारत में लोकतंत्र का मतलब आम जनता का शासन. जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए. बीते सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस परिभाषा पर खरा उतरने के लिए लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की जरूरत बताई.उन्होंने कहा कि मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी होने के चलते जनप्रतिनिधि गैरसमानुपातिक हो गए हैं. सबके सही और समान प्रतिनिधित्व के लिए लोकसभा की सीट संख्या 543 से बढ़ाकर एक हजार की जानी चाहिए. डोनाल्ड ट्रंप के अलावा इन राष्ट्रपतियों पर चल चुका है महाभियोग अगर आपको नही पता तो बता दे कि लोकसभा की वर्तमान सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना के आधार पर हुआ. इस जनगणना में देश की आबादी 55 करोड़ थी. दस लाख की आबादी पर एक सीट की अवधारणा के चलते तब लोकसभा के सदस्यों की संख्या 543 तय की गई. 2011 की जनगणना में भारत की आबादी 121 करोड़ हो चुकी है. इसका मतलब है कि 1971 की आबादी के दोगुने से भी अधिक. इस लिहाज से अब एक लोकसभा सदस्य पर 22.29 लाख लोगों का औसत बैठता है. इस अनुपात को कम किए जाने की दरकार है। तभी हम जनप्रतिनिधित्व की आदर्श कल्पना को साकार कर सकते हैं. उत्तर कोरिया : नेता किम जोंग के रास्ते में एक बार फिर आया अमेरिका, इस मामले में कर रहा विरोध लोकसभा सीटों को आबादी के हिसाब से अगर बढ़ाया गया तो कई राज्यों में ये सीटें वर्तमान के मुकाबले कम तो कई राज्यों में अधिक हो जाएंगी. कार्नेगी इंडिया का एक विश्लेषण बताता है कि 2011 की जनगणना के आधार पर अगर लोकसभा की सीटें तय की गईं तो दक्षिण के राज्यों में सीटें कम हो जाएंगी. तमिलनाडु में सात, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में संयुक्त रूप से पांच, केरल में पांच सीटें कम हो जाएंगी. उत्तर प्रदेश में आठ, बिहार में छह और राजस्थान में पांच सीटों का इजाफा होगा. ऐसे में यह फैसला विवाद की वजह भी बन सकता है. महाराष्ट्र : राज्य के लगभग सभी दल CAA के खिलाफ इस नाम से विरोध में खोलने वाले है मोर्चा सीएम के आदेश का पालन शासन के लिए कितना गंभीर, जानिए इसका उदाहरण... पाक विदेश मंत्री कुरैशी ने अपने बयान में की बकवास, कहा-भारत कश्मीर से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए झूठ...