राष्ट्रीय पोषण सप्ताह: ममता ने किया 2020 तक कुपोषण ख़त्म करने का दावा, पर कुछ और ही कहते हैं आंकड़े

नई दिल्ली: राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा है कि राज्य सरकार, सूबे में कुपोषण से लड़ने के लिए तैयार की गई योजना पर काम कर रही है, जिसके अनुसार वे 2020 तक पश्चिम बंगाल में कुपोषण ख़त्म करने का दावा कर रही हैं. ममता बनर्जी ने इस बारे में ट्वीट करते हुए कहा है कि “राष्ट्रीय पोषण मिशन आज से शुरू हो गया है, बंगाल में महिलाओं एवं बच्चों में 2020 तक लक्ष्यबद्ध तरीके से अल्प-पोषण और एनीमिया को कम करने के लिए बहुक्षेत्रीय रणनीति की तरह राज्य पोषण मिशन ने जुलाई 2017 से ही काम करना शुरू कर दिया है."

दरअसल शनिवार को राष्ट्रीय पोषण सप्ताह शुरू होने के साथ ममता बनर्जी ने सरकार को लक्ष्य करते हुए कहा है कि राज्य सरकार जुलाई 2017 से ही कुपोषण के खिलाफ लड़ाई शुरू कर चुकी है और 2020 तक राज्य सरकार सूबे से कुपोषण को उखाड़ फेंकेगी. उल्लेखनीय है कि हर साल एक सितम्बर से सात सितम्बर तक राष्ट्रिय पोषण सप्ताह मनाया जाता है, इस सप्ताह में पोषण के महत्त्व पर जागरुकता फैलाना प्रमुख उद्देश्य होता है, 1982 में केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण से निपटने के लिए इस सप्ताह को पहली बार मनाया गया था. लेकिन इस पोषण सप्ताह की शुरआत में ही ममता बनर्जी ने जो बयान दिया है, वो पश्चिम बंगाल के आंकड़ों से बिलकुल मेल नहीं खाता है. उल्लेखनीय है ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं और जैसा की वे हमेशा कहती हैं कि उन्होंने राज्य में बहुत काम किया है, तो आइए देखते हैं कि कुपोषण में मामले में पश्चिम बंगाल की क्या हालत है ?

पश्चिम बंगाल में कुपोषण

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4 2015-16 के लिए) डेटा के अनुसार, पश्चिम बंगाल में पांच वर्ष से कम आयु के 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे एनीमिक हैं. वहीं अगर बच्चों के अभिभावक की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार क्योंकि सभी महिलाओं में से 60 प्रतिशत से अधिक और 53.2 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को राज्य में एनीमिक पाया गया था. इसके साथ ही सर्वेक्षण में यह भी दर्शाया गया था कि राज्य में प्रसव के पूर्व और प्रसव के समय भी राज्य की महिलाओं को उचित देखभाल और चिकित्सीय सुविधएं नहीं मिल पा रही है. बाल अधिकार के क्षेत्रीय निदेशक (पूर्व) अतीन्द्र नाथ दास ने बताया है कि राज्य में महत्वपूर्ण बचपन की बीमारियों के टीकाकरण और उपचार पर काम किया है, किन्तु अब भी राज्य बाल पोषण के मामले में काफी पीछे है, जबकि पोषण की ही बच्चे के सर्वांगीण विकास में अहम् भूमिका रहती है. 

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