यहाँ एक दिन पहले ही शुरू हो गई नवरात्री, जानिए क्यों?

कोलकाता: पूरे देश में नवरात्रि का पर्व कल आरम्भ होगा, किन्तु बंगाल में इसका विशेष महत्व है। यहां आज प्रातः, यानी महालया अमावस्या को, चंडी पाठ किया गया। इस अवसर पर प्रातः 4 बजे से वीरेंद्र कृष्ण भद्र द्वारा गाए गए चंडी पाठ का प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो पर किया गया। तत्पश्चात, लोग गंगा घाट एवं अन्य पवित्र जलाशयों पर पहुंचे, जहां उन्होंने पितरों का तर्पण किया और उन्हें महालय, यानी भगवान के घर के लिए विदा किया। शाम को माता का चक्षुदान होगा, जिसमें माता की प्रतिमाओं में आंखों का आकार दिया जाएगा।

इसके साथ ही पूरे प्रदेश में नवरात्रि का जश्न आरम्भ हो जाएगा। इसी लिए आज के पर्व को महालया कहा जाता है। "महालया" संस्कृत का शब्द है, जो "महा" और "आलय" के संयोग से बना है, और इसका अर्थ है "बड़ा घर"। रामकृष्ण मिशन विवेकानंद एजुकेशनल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहायक प्रोफेसर राकेश दास बताते हैं कि महालया को बंगाल में अंतिम श्राद्ध माना जाता है और इसी दिन नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस दिन हम अपने पितरों को भगवान के घर में सुरक्षित पहुंचाने के पश्चात् माता रानी का आह्वान करते हैं। दोपहर के पश्चात् विभिन्न पंडालों में विराजमान माता की प्रतिमाओं में आंखों का आकार देकर चक्षुदान किया जाता है। 

राकेश दास ने बताया, यह परंपरा किसी शास्त्र में नहीं है, लेकिन बंगाल के लोकाचार का हिस्सा है। सदियों से लोग इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। मूर्तिकार समाज के सदस्यों का कहना है कि जब किसी पंडाल में प्रतिमा स्थापित होती है, तो उनके समाज के वरिष्ठ लोग ही चक्षुदान के लिए जाते हैं। जैसे ही वे माता की आंखों का आकार देते हैं, जयकारों के साथ उत्सव की शुरुआत होती है। बंगाल में दुर्गा पूजा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। उस वक़्त बंगाल में राजा कंश नारायण थे, जिन्होंने विश्व भर में ख्याति अर्जित करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने कई विद्वानों से राय ली, किन्तु सबने कहा कि कलियुग में अश्वमेघ यज्ञ का विधान नहीं है। फिर सभी विद्वानों ने एकमत होकर राजा को दुर्गा पूजा की महिमा बताई और पंडाल सजाने का सुझाव दिया। इसके बाद राजा ने पहली बार 1480 में भव्य और दिव्य तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन किया, और तब से यह परंपरा आरम्भ हो गई।

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