नौ दिनों का बेहद लंबा पर्व नवरात्रि का माना जाता है और कहते हैं यह पर्व ध्यान, साधना, जप और पूजन द्वारा आत्मिक शक्ति के विकास के लिए होता है. ऐसे में इन दिनों महिलाएं उपवास रखती हैं लेकिन एक स्त्री के साथ बहुत अधिक संभावना है कि 28 से 32 दिनों के मध्य घटित होने वाला उसका मासिक धर्म इन नौ दिनों में ही घटित हो जाए, और ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि ''तब क्या मासिक धर्म के दरमियान पूजा या उपासना संभव है या नहीं.'' आज हम आपको बताने जा रहे है इस सवाल का उत्तर. कहते हैं मनुष्य के द्वारा परमात्मा के अभिवादन को पूजा कहते हैं और उपासना का अर्थ है उप-आसना, यानी स्वयं के समक्ष वास करना, क्योंकि आध्यात्मिक दर्शन कहता है कि स्वयं में ही प्रभु रहते हैं. ऐसे में कर्मकांडीय पूजन में सूक्ष्म और स्थूल दोनों उपक्रमों को बराबर-बराबर समाहित किया गया है लेकिन कर्मकांडीय-पूजा ध्यान, आह्वान, आसन, पाद्य, अर्घ्य और आचमन में पिरोई हुई दृष्टिगोचर होती है. कहते हैं ज्योतिषों के मुताबिक ''जिस प्रकार आप कभी भी अपने प्रेम, क्रोध और घृणा को प्रकट कर सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपने मस्तिष्क में शुभ-अशुभ विचार ला सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपनी जुबान से कड़वे या मीठे वचन बोल सकते हैं, उसी प्रकार आप कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में प्रभु का ध्यान, उनका चिंतन, उनका स्मरण, उनका सुमिरन या मानसिक जप कर सकते हैं.'' ऐसे में परंपराएं और कर्मकांड मासिक धर्म में स्थूल उपक्रम यानी, देव प्रतिमा के स्पर्श, स्थूल पूजन और मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की सलाह नहीं देती हैं लेकिन हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, द्वेष इत्यादि को मासिक धर्म के दौरान अंगीकार कर सकते हैं, तो शुभ चिंतन और व्रत रखने में क्या आपत्ति है. जी हाँ, कहा जाता है मासिक धर्म के दौरान महिलाएं माता का व्रत रख सकती हैं लेकिन इस बीच स्थूल पूजन यानी देवी-देवताओं का स्पर्श ना करें. अगर आपको भी है शादी की जल्दी तो नवरात्र के इस दिन करें हल्दी का यह आसान उपाय यहाँ देखिए आज का शुभ मुहूर्त और पंचांग नवरात्र स्पेशल: व्रत के दौरान दिखे ये संकेत तो हो जाए सावधान