मसला ये तो नहीं की सिन-रसीदा कौन था... मसला ये तो नहीं की सिन-रसीदा कौन था हाँ मगर महफ़िल में तेरी बर-गुज़ीदा कौन था फ़ैसला जिस का भी था तेरा नहीं मेरा सही वक़्त-ए-रूख़्सत सर झुकाए आब-दीदा कौन था एक क़तरे की तलब और था समंदर सामने बज़्म-ए-याराँ में भला वो बद-अक़ीदा कौन था तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू फिर भला दोनेां में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था. -अशअर नजमी