नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के तथ्यों का पता लगाने के लिए समिति गठित करने की मांग वाली जनहित याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने बृहस्पतिवार को सुनवाई के लिए इसे सूचीबद्ध कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस बात का पता चला है कि जामिया निवासी रिजवान ने सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में समिति गठित करने की मांग की है. साथ ही मांग की है कि समिति की रिपोर्ट आने तक छात्रों के खिलाफ न तो एफआइआर दर्ज की जाए और न ही तत्काल कोई कार्रवाई की जाए. अब जिसके साथ ही बगैर सक्षम प्राधिकारियों की अनुमति के पुलिस को कैंपस में प्रवेश करने से रोका जाए. इसके अलावा छात्रों को कैंपस में प्रवेश करने दिया जाए और घायल छात्रों को मुआवजा दिए जाने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि जामिया में पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया था. जामिया मामले में अंतरिम राहत देने से इनकार: वहीं यह भी कहा जा रहा है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के बाद हिंसा के मामले में दो छात्राओं की याचिका पर उनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई पर अंतरिम राहत देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया. जामिया छात्र लदीदा फरजाना एवं अयेश रेन्ना ने याचिका में हिंसा के दौरान हिरासत में लिए गए जामिया एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों को रिहा करने की भी मांग की थी. उनकी याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार एवं सॉलिसिटर जनरल के बीच तीखी बहस हुई. जमानत याचिका खारिज: साकेत कोर्ट ने रविवार यानी 15 दिसंबर 2019 को जामिया हिंसा के मामले में आरोपित मो. हनीफ की जमानत याचिका खारिज कर दी है. वहीं मेट्रो पॉलिटन मजिस्ट्रेट रजत गोयल ने कहा कि इस तरह के अपराध के लिए जमानत नहीं दी जा सकती है. मंगलवार को कोर्ट ने 6 आरोपितों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा था. सभी पुलिस बूथ जलाने और पत्थरबाजी करने के मामले में आरोपित हैं. उत्तर प्रदेश के सीएम के सामने बीजेपी विधायक ने रखी अपनी समस्या, योगी ने कही यह बात... हिमाचल में महसूस किए गए भूकंप के झटके, अपने घरों को छोड़कर बाहर दौड़े लोग उत्तर प्रदेश: योगी सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे 100 भाजपा विधायक, मनाने पहुंचे डिप्टी सीएम