भारत और चीन का विवाद बढ़ा, सबक लेने की है जरूरत

जम्मू: कुछ दिनों से लगतार भारत और चीन को लेकर बढ़ रहे तनाव के कारण लोगों की परेशानी और भी बढ़ती जा रही है. पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत के साथ जारी तनाव ने एक बार फिर साबित कर चुका है . जंहा चीन दूसरे देशों का सम्मान नहीं करता और वो जो भी कहता है, उसका कोई अर्थ नहीं होता. कई विशेषज्ञ भी चेता चुके हैं कि भारत-चीन सीमा तनाव से कई देशों को सबक लेने की जरूरत है.

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट सी ओ' जंहा यह भी कहा जा रहा है कि ब्रायन ने कहा, आखिरकार अमेरिका चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसके खतरे के बारें में जान चुका है. हमारा मानना था कि जैसे चीन समृद्ध और मजबूत होगा, कम्युनिस्ट पार्टी अपने लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करेगी, लेकिन दुर्भाग्य से हम गलत साबित हुए है. 1930 के दशक के बाद से अमेरिकी विदेशी नीति की यह सबसे बड़ी असफलता है. हमने इस तरह की गलती कैसे की? हम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का स्वभाव समझने में कैसे चूक गए? इसका जवाब सरल है क्योंकि हमने कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा पर ध्यान नहीं दिया. कम्युनिस्ट पार्टी अपने लोगों पर पूरा नियंत्रण करना चाहती है.

मिली जानकारी के अनुसार चाहे वह आर्थिक नियंत्रण हो या राजनीतिक, चाहे शारीरिक नियंत्रण हो या मानसिक. उसका एकमात्र मकसद पूर्ण नियंत्रण किया जा रहा है. 15 जून को गलवां घाटी में हुई बर्बरता चीन के व्यवहार को लेकर काफी कुछ बयां करती है. चीन अब पहले से अधिक विस्तारवादी और आक्रामक है. शांग्री ला डायलॉग सीनियर फेलो फॉर एशिया पैसेफिक सिक्योरिटी डॉ. युआन ग्राहम कहते हैं, मौजूदा समय में चीन कई मोर्चों पर जुटा है. हांगकांग, ताइवान, भारत के साथ सैन्य गतिरोध और दक्षिणी चीन सागर. ऐसे में सबसे बड़ी चिंता है कि उसका अगला कदम क्या होगा. दुर्भाग्य से चीन अब उस क्षेत्र पर दावा कर रहा है, जो कभी उसका था ही नहीं.

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