उज्जैन : सेवा बहुत बहुत बड़ा तप है। निस्वार्थ भाव से सेवा का तप करने से र्दुभाग्य की रेखाएं तक मिट जाती हैं। इसलिए दीन, दुखी, बुजुर्ग, माता-पिता की सेवा करने का अवसर कभी मत छोड़ना। उन्होंने कहा कि हमेशा दूसरे का भला करोगे, तो आपका भला तो अपने आप हो जाएगा। जीवन में जितना श्वांस का महत्व है, उतना विश्वास का भी है। इसलिए कभी किसी का विश्वास नहीं तोड़ना। आस (आशा) और विश्वास कभी नहीं छोड़ना चाहिए। दृढ़ विश्वास के साथ कर्म करते रहिए। अपनी खुशी पर अपने ऊपर निर्भर करना, कभी भी दूसरों की खुशी पर निर्मर नहीं रहना। साथ ही खुशी मनाने के लिए कभी कल का इंतजार नहीं करना, क्योंकि कल हो न हो। आचार्यश्री ने कहा कि पूज्य भृतहरिजी ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति आभूषण पहनने भर से सुंदर नहीं हो जाता है। इंसान की वाणी ही उसका आभूषण है। इसलिए हमें हमेशा मुधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। जितने भी बड़े युद्ध हुए हैं, सब कटाक्ष करने के कारण हुए हैं। इसलिए सोच संभल कर ही बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस कहता है, कि शरीर में सिर्फ जीभ ही ऐसा अंग है, जिसपर लगा घाव सबसे जल्दी भरता है। लेकिन जीभ जो घाव देती है, उसका घाव जीवन भर नहीं भरता है। हमेशा अच्छे वचन बोलना वाणी का तप है। शिप्रा सेवा यात्रा एवं नदी संरक्षण जन-जागृति अभियान चलाया जायेगा शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारों को भी मिलेगा समान महंगाई भत्ता विश्व पर्यावरण दिवस से प्रदेश में निकलेगी पेड़ लगाओ यात्राएँ