जन्मदिन विशेष 'निदा फ़ाज़ली' : माशूका की मौत ने बनाया था शायर...

हमने ग़ालिब को नहीं देखा, कबीर-सूरदास को भी नहीं सुना. लेकिन हमने निदा फ़ाज़ली को सुना, देखा और पढ़ा भी है. उनकी शायरी में इंसानी जज्बातों के सारे रंग नज़र आते है. आज हम आपको निदा फ़ाज़ली की ज़िंदगी के शायराना सफर पर ले जाने वाले है. निदा फ़ाज़ली का जन्म आज ही के दिन 12 अक्टूबर 1938 को ग्वालियर मध्यप्रदेश में हुआ था. उनका नाम 'मुक्तदा हसन' रखा गया था. उनके पिता मुर्तुजा हसन भी शायर थे. उनका बचपन ग्वालियर में ही गुजरा. उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से ही पूरी की. छोटी सी उम्र में ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था.

'निदा फ़ाज़ली' उनका लेखन वाला नाम था. निदा का अर्थ होता है स्वर या आवाज़ और फ़ाज़िला कश्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पुरखे आकर दिल्ली में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा. बताया जाता है कि उनकी पढ़ाई के दौरान उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी, निदा साहब उससे एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे. लेकिन एक दिन जब उस लड़की की मौत की खबर जब निदा साहब को पता चली तो वे बहुत दुखी हुए और अंदर से टूट गए. तभी उन्होंने पाया कि उनका लिखा कुछ भी उनका दुःख व्यक्त नहीं कर पा रहा है और ना ही उनके लिखने के तरीके से वे कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनका दुःख बाहर आ सके.

अपने इस दुःख को बाहर लाने के लिए उन्होंने कई महान कवियों जैसे कबीरदास, तुलसीदास, बाबा फरीद आदि को पढ़ा. तब जाकर उन्होंने अपनी एक सीधी-साधी और सरल भाषा को अपनी शैली बनाया. जिसके बाद उन्होंने जो भी रचनाएं लिखी है उनमे उनका दर्द साफ छलकता है.

लेखन में अपने भविष्य को तलाशते हुए वे 1964 में नौकरी के सिलसिले में मुंबई पहुंचे और वहीं के होकर रह गए. मुंबई और बॉलीवुड में रहते हुए उन्होंने कई गीत, ग़ज़ल और नज़्मे लिखी. उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर में कई बेहतरीन गीत लिखे जो आप भी लोगों की जुबान पर चढ़ गए, उनके लिखे गीत आज भी उतनी ही उसी शिद्दत से सुने जाते है. निदा साहब 16 फ़रवरी 2016 को 78 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनके गीतों, ग़जलों और नज़्मों से वे आज भी ज़िंदा है.

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