ग्वालियर। संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट में सजी नौंवी संगीत सभा में सुर मखमली अहसास हुआ। संगीत कलाकारों ने ऐसा झूमके गाया-बजाया कि रसिक सुध-बुध खो बैठे। इस साल के तानसेन समारोह के तहत यह सभा बेहट में शुक्रवार को भगवान भोले के मंदिर और झिलमिल नदी के समीप स्थित ध्रुपद केन्द्र परिसर में सजी। यह वही जगह थी जहाँ संगीत सम्राट का बचपन संगीत साधना और बकरियाँ चराते हुए बीता था। लोक धारणा है कि तानसेन की तान से ही निर्जन में बना भगवान शिव का मंदिर तिरछा हो गया था। यह भी किंवदंती है कि 10 वर्षीय बेजुबान बालक तन्ना उर्फ तनसुख भगवान भोले का वरदान पाकर संगीत सम्राट तानसेन बन गया। बेहट में सजी संगीत सभा में जिला पंचायत अध्यक्ष दुर्गेश कुँअर सिंह जाटव सहित अन्य जनप्रतिनिधि गण एवं संभाग आयुक्त दीपक सिंह ने सपत्नीक स्वर लहरियों का आनंद उठाया। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे, क्षेत्रीय एसडीएम पुष्पा पुषाम व जनपद पंचायत के सीईओ राजीव मिश्रा सहित अन्य अधिकारी एवं बड़ी संख्या में क्षेत्रीय ग्रामों एवं ग्वालियर व अन्य शहरों से आए रसिक इस सभा का आनंद लेने पहुँचे थे। सभा का संचालन अशोक आनंद ने किया। तानसेन की देहरी पर संगीत सभा की शुरूआत पारंपरिक ढंग से ध्रुपद केन्द्र बेहट के ध्रुपद गायन से हुई। यहाँ के बच्चों ने राग "अहीर भैरव" में ध्रुपद रचना प्रस्तुत की। ताल-चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “ चलो सखी ब्रजराज"। इसके बाद सूल ताल में बंदिश " दुर्गेश भवानी दयानी" का सुमधुर गायन किया। इस प्रस्तुति पर ध्रुपद केन्द्र के बच्चों को रसिकों की भरपूर सराहना मिली। पखावज पर श्री संजय पंत आगले ने कसी हुई संगत की। सिख समाज ने खालिस्तानी समर्थक के पकड़े जाने को लेकर की पत्रकारवार्ता मध्यप्रदेश में संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल जारी प्रसूताओं को नहीं मिल रहा शासन द्वारा भेजा गया आहार