आज जिसे देखो वह सदन में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रस्तावित किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बात कर रहा है। शुक्रवार रात को अविश्वास प्रस्ताव 126 के मुकाबले 325 वोट से गिर गया। अब यहां सवाल उठता है कि जब विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं था, तो वह अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया। आखिर क्यों सरकार के खिलाफ इतना हो—हल्ला किया गया। इसका सीधा सा अर्थ है कि ये राजनीति है और राजनीति में कई बार तुरंत के फायदे को नहीं देखा जाता। राहुल-मोदी के मिलन पर शिवसेना की चुटकी कहा- भाई तू तो छा गया... अब अगर हम अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पार्टियों की बात करें, तो कांग्रेस को इससे क्या फायदा मिला? दरअसल, इस मौके को कांग्रेस ने राहुल गांधी की छवि सुधारने के तौर पर भुनाया। लोकसभा में जिस तरह से राहुल बोले, वह लोगों के लिए नया था। राहुल अपनी लाइन से नहीं हटे और उन्होंने यह बता दिया कि वह पप्पू नहीं है, बल्कि उनकी पार्टी देश की सबसे पहली पार्टी है और वह इसे साबित भी कर सकते हैं। इसके बाद अगर हम बात करें भाजपा की, तो जिस तरह से मोदी ने संसद में विपक्ष के सवालों का जवाब दिया। उस पर कटाक्ष किया, वह यह बताता है कि आज भी मोदी शैली वही है, जो 2014 में थी। उन्होंने अपने चुटीले, तार्किक अंदाज में जैसे जवाब दिया, उससे यह साबित हो गया कि वह अगले चुनावों के लिए तैयार हैं और एक बार फिर भाजपा हर—हर मोदी, घर—घर मोदी के मुद्दे को लेकर चुनाव में उतरेगी। पीएम मोदी ने दिए ऐसे जवाब राहुल हुए हैरान परेशान इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पहली बार सदन में आंध्रप्रदेश की पार्टी टीडीपी का विरोध देखने को मिला। इतना ही नहीं प्रस्ताव भी टीडीपी ही लेकर आई। आखिर ऐसा क्यों हुआ। इसका जवाब वही है कि टीडीपी भी आने वाले चुनावों की रूपरेखा लिख रही है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस अविश्वास प्रस्ताव का फायदा किसको मिला, तो यदि प्रत्यक्ष तौर पर देखा जाए, तो किसी को नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर देखा जाए, तो कांग्रेस, भाजपा और प्रादेशिक पार्टियों को इसका फायदा मिला, क्योंकि यह क्षण 2019 के चुनाव की रूपरेखा तय करेगा। इस बारे में भी जानें Editor Desk: जानिए क्या है Article 377 और इसकी बहस Editor Desk: आखिर कब होगा सदन की मर्यादा का पालन?