न बिजली-न मोबाइल, और ना कोई आधुनिक सुविधा..! ये है भारत का एकमात्र 'वैदिक गाँव'

गुंटूर: आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में कुर्मा नाम का एक खास गांव है, जहां लोग आज भी वैदिक परंपराओं के अनुसार जीवन जीते हैं। प्रकृति के करीब बसे इस गांव की जीवनशैली पूरी तरह पारंपरिक है। आधुनिकता से दूर, यहां के लोग गुरुकुल पद्धति का पालन करते हैं और खेती-बाड़ी से लेकर जीवन के अन्य पहलुओं तक में पुराने तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।     कुर्मा गांव में सिर्फ 56 लोग रहते हैं। यहां के लोग मिट्टी, रेत, चूने, नींबू, और गुड़ से घर बनाते हैं। सीमेंट और लोहे का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता। खेती भी पारंपरिक तरीके से होती है, जिसमें किसी तरह की मशीन या रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता। यहां के किसान काले और लाल चावल की खेती करते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि वे अपने कपड़े भी प्राकृतिक केसर के रस से धोते हैं और किसी प्रकार के डिटर्जेंट का इस्तेमाल नहीं करते। यहां की कुटीर उद्योग प्रणाली में कपड़े बुनने और सिलने का काम होता है। गांव में एक शिक्षक हैं, जो वेदों की शिक्षा देते हैं।  

2018 में, अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसायटी (इस्कॉन) के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद और उनके शिष्यों ने इस गांव में अपनी कुटिया स्थापित की। यहां शाम को धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गांव में रामायण, वेद, पुराण और अन्य हिंदू ग्रंथों का अध्ययन और चर्चा की जाती है। यहां के छात्र तेलुगु, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कुशल हैं।  

गांव में बिजली नहीं है, इसलिए यहां पंखे, टीवी, और मोबाइल फोन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल नहीं होता। लोग पूरी तरह सादगी और आत्मनिर्भरता पर निर्भर हैं। कुर्मा गांव में आवास और भोजन निःशुल्क उपलब्ध है, लेकिन यहां रहने के लिए नियमों का पालन करना जरूरी है। महिलाएं अकेले नहीं रह सकतीं; उन्हें अपने पिता, पति या भाई के साथ आना होता है। सुबह 3:30 बजे उठकर दिव्य पूजा करना अनिवार्य है। इसके बाद भजन और प्रसाद ग्रहण करने के बाद लोग अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं।  

कुर्मा गांव, आधुनिक जीवनशैली से दूर, एक वैदिक और आत्मनिर्भर जीवन जीने का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह गांव दिखाता है कि किस तरह प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर पारंपरिक जीवनशैली को अपनाया जा सकता है।  

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