ना फोन, ना दरबार-चौपाल..! धमकियों के बाद पप्पू यादव का टाइम-टेबल क्यों बदल गया ?

पटना: गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई की धमकियों के चलते पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव इन दिनों चर्चा में हैं। लॉरेंस के समर्थक लगातार उन्हें धमकियां दे रहे हैं, जिससे पप्पू यादव के जीवन और सामाजिक गतिविधियों पर खासा असर पड़ा है। जहां पहले उनके निवास अर्जुन भवन में लोगों की भीड़ लगी रहती थी, अब वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। उनकी पत्नी रंजीत रंजन ने भी उनसे दूरी बना ली है, हालांकि पप्पू यादव का अडिग और साहसी स्वभाव अभी भी कायम है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि जो उन्हें मारना चाहता है, वह आकर सामना करे।

पप्पू यादव ने एक बार फिर लॉरेंस बिश्नोई को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही मुंबई में चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे और वहां दो दिनों तक रुकेंगे। मुंबई में वह दिवंगत बाबा सिद्दकी के बेटे जीशान सिद्दकी के समर्थन में प्रचार करेंगे। पप्पू यादव के करीबी लोगों का कहना है कि उनकी पत्नी रंजीत रंजन लगातार उन पर लॉरेंस के खिलाफ बयान न देने का दबाव बना रही हैं। इसी वजह से रंजीत रंजन ने कुछ समय पहले यह भी कहा था कि पप्पू यादव के बयानों से उनका या उनके बच्चों का कोई संबंध नहीं है। माना जा रहा है कि यह बयान उन्होंने अपनी और बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर दिया।

इधर, पप्पू यादव की मां शांति प्रिया भी तनाव के कारण बीमार हो गई हैं और उनका पूर्णिया के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है। लॉरेंस बिश्नोई के डर और बढ़ते दबाव ने पप्पू यादव की दिनचर्या को पूरी तरह से बदल दिया है। पहले वे बिना किसी सुरक्षा के भीड़ में घुलमिल जाते थे, लेकिन अब वे हर समय कड़े सुरक्षा घेरे में रहते हैं। पूर्णिया और मधेपुरा स्थित उनके आवास पर लगने वाले दरबार और रात्रि चौपाल भी पिछले दस दिनों से बंद हैं। इसके अलावा, उनके न्याय के मंदिर का फोन भी शांत है और लोग अपनी शिकायतें लेकर अब उनके पास नहीं आ रहे हैं। 

हालांकि, एक कारण यह भी है कि पप्पू यादव इन दिनों झारखंड चुनाव में व्यस्त हैं। लॉरेंस बिश्नोई के मामले से पहले पप्पू यादव हर दिन सुबह 6 बजे अपने दरबार में जनता की समस्याएं सुनने बैठते थे। इस दौरान वे लोगों से बातचीत करते हुए नाश्ता करते और डॉक्टरों की सलाह पर अपनी दवाएं लेते। उनके दरबार में कोई सुरक्षा गार्ड नहीं होता था, और लोग बेझिझक उनसे मिलते थे। दिन में 10-11 बजे के बाद वे पूर्णिया, कटिहार और मधेपुरा के कार्यक्रमों के लिए निकल जाते थे। अब उनकी गतिविधियां कम हो गई हैं, और वे सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बच रहे हैं। जहां भी जाते हैं, सुरक्षाकर्मी उन्हें घेरे रहते हैं।

पहले पप्पू यादव बिहार के सीमांचल और अन्य जिलों में दिनभर कार्यक्रमों में भाग लेते थे और रात 11 बजे लौटकर अपने कार्यकर्ताओं के साथ रात्रि चौपाल लगाते थे। वे रात को करीब 3 बजे सोते थे। लेकिन अब, धमकियों और बढ़ते दबाव के कारण उनकी यह सक्रिय दिनचर्या प्रभावित हो गई है।

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