इस मंदिर का प्रसाद नहीं खा सकती है महिलाये

आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारें में बता रहे है जो अपने आप में ही अनोखा है. जिसके कारण ये विश्व प्रसिद्ध है. यह मंदिर है निरई माता मंदिर. यह मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है. जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर सोढूल, पैरी नदी के तट पर बसे ग्राम पंचायत मोहेरा के आश्रित ग्राम निरई की पहाड़ी पर विराजमान मां निराई माता श्रद्घालुओं एवं भक्तों का आकर्षण का केंद्र है.

यह मंदिर अंचल के देवी भक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र है. निरई माता में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता. नारियल, अगरबत्ती, से माता को मनाया जाता हैं. देश के अन्य मंदिरों में जहां दिन भर मातारानी के दर्शन होते हैं वहीं यहां सुबह 4 बजे से सुबह 9 बजे तक यानि केवल 5 घंटे ही माता के दर्शन किए जा सकते हैं. केवल 5 घंटे के लिए खुलने वाले मंदिर में दर्शन करने हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं.

इस मंदिर में महिलाओं को प्रवेश और पूजा-पाठ की इजाजत नहीं हैं, यहां केवल पुरुष पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं. महिलाओं के लिए इस मंदिर का प्रसाद खाना भी वर्जित है, खा लेने पर कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है.

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण सोंढूल और पैरी नदी के संगम के मुहाने पर पहाड़ी पर स्थित मां निरई में मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धानुसार कुछ देने की परंपरा है. इस दिन यहां हजारों बकरों की बलि दी जाती है. मान्यता है बलि चढ़ाने से देवी मां प्रसन्न होकर सभी मनोकामना पूरी करती हैं, वहीं कई लोग मन्नत पूरी होने के बाद भेंट के रूप में जानवरों की बलि देते हैं. यहां जानवरों में खासकर बकरे की बलि की प्रथा आज भी जारी है.  

आम जनता अपनी समस्या के निदान एवं मनवांछित वरदान प्राप्त करने दूर दराज से आते हैं.

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