'किसानों के लिए कुछ नहीं किया..', अपनी ही सरकार पर भड़के कांग्रेस विधायक राजू कागे

बैंगलोर: कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के विधायक भरमगौड़ा कागे, जिन्हें राजू कागे के नाम से भी जाना जाता है, ने अपनी ही पार्टी की सरकार पर किसानों के मुद्दों को लेकर लापरवाही का आरोप लगाया है। शुक्रवार, 11 अक्टूबर को, उन्होंने राज्य सरकार पर किसानों के लिए कोई ठोस कदम न उठाने की आलोचना की। उनका कहना है कि वह पिछले एक साल से किसानों की समस्याओं को लेकर आवाज उठा रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सरकार से किसानों की हालत में सुधार करने और उनके अस्तित्व को बचाने में मदद करने की अपील की है।

भरमगौड़ा कागे ने यहां तक कहा कि अगर स्थिति में सुधार नहीं होता, तो वह अपने विधायक पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने बेलगावी जिले के कागवाड निर्वाचन क्षेत्र के तवाशी गांव में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि राज्य में किसानों के लिए कोई योजना लागू नहीं की जा रही है। उन्होंने चिंता जताई कि अगर किसान चावल और अन्य फसलें नहीं उगाएंगे, तो देश के लोगों को खाने के लिए क्या मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमें सबसे पहले किसानों के अस्तित्व को बचाने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि बिना उनके, देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

कागे ने यह भी कहा कि वह किसानों के मुद्दों को सरकार के सामने रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन सरकार से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है। उन्होंने किसानों की समस्याओं को उजागर करने के लिए पत्रकारों से भी अपील की। उन्होंने कहा कि अगर विधायक होते हुए भी वह अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं, तो यह स्थिति सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाती है। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर सरकार किसानों के लिए कुछ नहीं कर सकती, तो उन्हें सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। कांग्रेस विधायक ने कहा कि, ''क्या मुझे झूठ बोलकर नाटक करना चाहिए, सच तो ये है कि सरकार किसानों के लिए कोई योजना नहीं लाइ है। किसान फसल नहीं उगाएगा, तो हम क्या नोट खाएंगे ?'' उन्होंने कहा कि अगर मैं सत्ताधारी दल का विधायक होने के बावजूद इतना असमर्थ हूँ, तो आप समझ सकते हैं कि हम कैसी व्यवस्था में रह रहे हैं।  

कागे ने अपने बयान में सरकार से साफ शब्दों में कहा कि वह किसानों के अस्तित्व को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, तो वह ‘विधान सौध’ (राज्य विधानमंडल और सचिवालय) में जाकर अपनी जान देने तक की धमकी देने को मजबूर हो सकते हैं। उनके इस बयान ने किसानों के मुद्दों पर सरकार की भूमिका को लेकर एक गंभीर चर्चा को जन्म दे दिया है।

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