'अब मैं आज़ाद हूँ..', सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होकर ऐसा क्यों बोलीं जस्टिस इंदिरा बनर्जी ?

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की 5वीं सीनियर जस्टिस इंदिरा बनर्जी 4 वर्ष से ज्यादा समय तक पद पर रहने के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गईं है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि आने वाले दिनों में और ज्यादा महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा है कि वह फिर से आज़ाद महसूस कर रही हैं, क्योंकि एक जज का जीवन बलिदान से भरा होता है। उन्हें अपने जीवन में कई चीजों को छोड़ना पड़ता है। 

जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने यह स्वीकार किया है कि कानूनी पेशे में आना एक संयोग था। उन्होंने कहा कि, 'यदि मेरे पिता जीवित होते तो शायद ही मैं जज बनना स्वीकार करती। वह अक्सर मुझे जज बनने की बात कहते रहते थे, मगर मैं हर बार उन्हें मना कर देती थी।' बता दें कि जस्टिस बनर्जी, सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली 8वीं महिला न्यायाधीश थीं। अब उनकी सेवानिवृत्ति के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की तादाद फिलहाल तीन रह जाएगी। इनमें न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी शामिल हैं। 

बता दें कि, 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आए शीर्ष अदालत में बीते 72 वर्षों में सिर्फ 11 महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है। पहली महिला न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी की नियुक्ति 1989 में हुई थी। शीर्ष अदालत में नियुक्त अन्य महिला न्यायाधीशों में जस्टिस सुजाता वी मनोहर, जस्टिस रूमा पाल, जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा, जस्टिस रंजना पी देसाई, जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​शामिल थीं।

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