'अब तो सिर्फ PoK लेना बाकी..', जयशंकर ने दुनिया को बताया मोदी सरकार का इरादा

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा कश्मीर का मुद्दा उठाने के बाद भारत ने जोरदार प्रतिक्रिया दी है। पहले, संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रतिनिधि भाविका मंगलनंदन ने पाकिस्तान को उसकी सही जगह दिखाते हुए कड़ा संदेश दिया, और अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट चेतावनी जारी की है। जयशंकर ने न्यूयॉर्क में UNGA के 79वें सत्र में बोलते हुए कहा कि अब दोनों देशों के बीच एकमात्र मुद्दा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को वापस लेने का है।

जयशंकर ने पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद की नीतियों पर कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह कभी सफल नहीं होगा और पाकिस्तान को इसका अंजाम भुगतना होगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देना और उसके इस लगाव को छोड़ने की आवश्यकता है। जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मुद्दा केवल पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली करने का है। उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ देश जानबूझकर ऐसे निर्णय लेते हैं जो विनाशकारी होते हैं, और पाकिस्तान इसका एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा दूसरों पर थोपे गए आतंकवाद और कट्टरता की नीतियाँ अब उसे खुद ही निगल रही हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इससे पहले कश्मीर में भारत की नीतियों की आलोचना करते हुए इसे फिलिस्तीन से जोड़ा था। शरीफ ने कहा था कि कश्मीर के लोगों ने भी फिलिस्तीन की तरह अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया है। साथ ही, उन्होंने भारत की बढ़ती सैन्य क्षमताओं पर चिंता जताई और कहा कि पाकिस्तान भी किसी दुस्साहस का जवाब देने के लिए तैयार है। भारत की ओर से भाविका मंगलनंदन ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद को भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है और इसने भारत की संसद, मुंबई, बाजारों और तीर्थस्थलों पर हमला किया है। 

उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के लिए कहीं भी हिंसा के बारे में बात करना सबसे बड़ा पाखंड है, क्योंकि यह खुद अपने देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करता आ रहा है। भाविका ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि सीमा पार आतंकवाद के परिणाम उसे जरूर भुगतने होंगे, और यह हास्यास्पद है कि 1971 में नरसंहार करने वाला देश अब असहिष्णुता और भय की बात करने का साहस कर रहा है।

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