जो बनते हैं किसानों के नेता, हरियाणा में बुरी तरह हारे वो गुरनाम सिंह चढूनी

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनावों की मतगणना लगभग पूरी हो चुकी है, और सभी एग्जिट पोल्स को गलत साबित करते हुए बीजेपी लगातार तीसरी बार राज्य में बहुमत हासिल कर रही है। इस बीच, 2020-21 के किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी को पिहोवा सीट से करारी हार का सामना करना पड़ा है। गुरनाम सिंह, जो भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रमुख भी हैं, संयुक्त संघर्ष पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें मात्र 1,170 वोट मिले, जिससे उनकी जमानत जब्त हो गई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गुरनाम सिंह इस सीट पर पाँचवें स्थान पर रहे।

इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार मंदीप चाठा ने 64,548 वोट हासिल कर बीजेपी के जय भगवान शर्मा को 6,553 वोटों से हराया। जय भगवान को 57,995 वोट मिले। वहीं, आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी गेहाल सिंह संधू को केवल 890 वोट मिले और वे छठे स्थान पर रहे। गुरनाम सिंह चढूनी, जो किसान आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे और सरकार के साथ बातचीत के दौरान करोड़ों किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, चुनावी मैदान में इतनी बुरी तरह हारने के बाद अब सवालों के घेरे में हैं। इस हार ने किसान आंदोलन के राजनीतिक असर पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

इस पर दलित नेता और लेखक दिलीप मंडल ने ट्वीट करते हुए लिखा, "गुरनाम सिंह चढूनी किसान आंदोलन के सबसे जाने-पहचाने चेहरों में हैं। वे सरकार के साथ बातचीत में करोड़ों किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर बैठते हैं। हरियाणा की पिहोवा सीट पर उन्हें 1,170 वोट मिले हैं। राकेश टिकैत भी यूपी में बुरा हारते हैं। किसान आंदोलन नहीं, तरक़्क़ी चाहते हैं।" चढूनी की इस हार से यह स्पष्ट होता है कि हरियाणा में किसान आंदोलन का राजनीतिक समर्थन सीमित रहा, और लोग अब विकास और तरक्की पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

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