नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर हिंसा पर एक नई जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें अन्य बातों के अलावा कथित पोस्ते की खेती और नार्को-आतंकवाद की SIT जांच की मांग की गई थी। अदालत एक "अधिक विशिष्ट" याचिका की मांग करते हुए कहा कि इस पर विचार करना "बहुत कठिन" था, क्योंकि इसमें केवल एक समुदाय को दोषी ठहराया गया था। इसके बाद, याचिकाकर्ता मायांगलांबम बॉबी मैतई की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान ने याचिका वापस लेने की मांग की और उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी गई। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, "इस याचिका पर विचार करना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह एक समुदाय पर दोषारोपण करती है।" पीठ ने कहा, "आप एक अधिक विशिष्ट याचिका के साथ आ सकते हैं। इस याचिका में हिंसा से लेकर नशीले पदार्थों से लेकर वनों की कटाई तक सब कुछ है।" सुश्री दीवान ने हाल की हिंसा के लिए सीमा पार आतंकवाद और राज्य में अफीम की खेती को जिम्मेदार बताया। याचिका में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और NHRC के साथ-साथ राज्य सरकार सहित अन्य को पक्षकार बनाया गया। बता दें कि पीठ के समक्ष मणिपुर हिंसा के कई पहलुओं से संबंधित अन्य याचिकाएं भी हैं। 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से कम से कम 150 लोग मारे गए हैं और कई सौ लोग घायल हुए हैं। दरअसल, राज्य में लगभग 53 फीसद आबादी वाले मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने का 30 फीसद आबादी वाले कुकी समुदाय विरोध कर रहा है। क्या है मणिपुर हिंसा की मुख्य वजह ? बता दें कि, मणिपुर का 90 फीसद क्षेत्र पहाड़ी इलाका है, जहाँ नागा और कूकी समुदाय के लोग रहते हैं। जबकि, शेष 10 फीसद क्षेत्र घाटी है, जिसमे मैतई लोग रहते हैं। मणिपुर की स्थानीय आबादी, मैतई समुदाय की समस्या ये है कि, उन्हें राज्य के केवल 10 फीसद जमीन पर सिमटना पड़ रहा है। दरअसल, मणिपुर के कानून के तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न ही वहां जमीन खरीद सकते हैं। मगर, 90 फीसद पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं। इस तरह ये मैतई समुदाय के साथ भेदभाव ही है, जिसके लिए उन्होंने ST दर्जा माँगा था, जो मणिपुर हाई कोर्ट ने तमाम तथ्य देखने के बाद दे भी दिया। लेकिन, कूकी और नागा समुदाय इससे आगबबूला हो गए और मैतई पर हमला हो गया। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। यदि मैतई को ST का दर्जा मिलता है, तो वे भी पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं और वहां जमीन खरीदकर खेती-बाड़ी कर सकते हैं। मैतई लोगों का कहना है कि, इन पहाड़ी इलाकों में कूकी और नागा, अफीम की खेती करते हैं और इससे नार्को आतंकवाद पनप रहा है। इस याचिका में यही मांग थी कि, सुप्रीम कोर्ट, अफीम की खेती और नार्को आतंकवाद की SIT जांच का आदेश दे, लेकिन अदालत ने याचिका पर विचार करने से ही इंकार कर दिया। कर्नाटक में 'विकास कार्य' के लिए पैसा क्यों नहीं ? कांग्रेस विधायकों ने सीएम सिद्धारमैया को लिखा था पत्र, मचा सियासी बवाल I.N.D.I.A गठबंधन को झटका देंगे शरद पवार! पीएम मोदी को करेंगे सम्मानित, मनाने में जुटे कांग्रेस-शिवसेना 'जो आपसे 70 सालों में नहीं हुआ, वो मोदी सरकार ने 9 साल में किया..', एयरपोर्ट को लेकर आपस में भिड़े सिंधिया-चिदंबरम