शेख हसीना के तख्तापलट को लोकतांत्रिक जीत बताने वाला विपक्ष, हिन्दू नरसंहार पर क्यों मौन?

नई दिल्ली: बांग्लादेश में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं, जहां शेख हसीना के शासन के खत्म होते ही इस्लामी कट्टरपंथियों ने राज्य की सत्ता पर कब्जा कर लिया है और अब हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा और नरसंहार की घटनाएं आम हो गई हैं। जबकि शेख हसीना के तख्तापलट को लोकतंत्र की जीत और बांग्लादेश की राजनीतिक स्वतंत्रता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, वहां हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रहे जुल्मों पर भारतीय विपक्षी दलों की चुप्पी गहरी चिंता का विषय बन गई है। 

 

यहाँ तक कि डोनाल्ड ट्रम्प और ब्रिटेन के सांसद बॉब ब्लैकमैन जैसे विदेशी राजनेता भी बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे इस्लामी अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन भारतीय विपक्ष मौन है, जो गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। कुछ समय पहले तक यही विपक्ष हज़ारों किलोमीटर दूर फिलिस्तीन के मुद्दे पर बहुत मुखर था, कांग्रेस ने फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया था, वामपंथी दलों ने रैलियां की थीं, केरल में हमास का नेता भाषण देकर गया था, क्योंकि तब पीड़ित मुस्लिम थे, और अब हिन्दू हैं, तो भाजपा-शिवसेना के अलावा उनके लिए बोलने वाला कोई नहीं बचा।

 

भारत में सत्ता विरोधी दल बांग्लादेश की स्थिति पर कम ही बोल रहे हैं, और यदि कुछ बोलते भी हैं, तो उनका ध्यान बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की बजाय भारत में मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले कथित अत्याचारों पर है। इस तरह की बयानबाजी भारतीय राजनीति में वोट बैंक की राजनीति के असर को साफ तौर पर दर्शाती है। यह दृष्टिकोण न केवल बांग्लादेश में हो रहे निर्दोष हिंदू नागरिकों पर हो रहे हमलों को नज़रअंदाज करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जब बात बहुसंख्यक समुदाय की होती है, तो कई विपक्षी दल अपनी राजनीतिक फायदे के लिए चुप रहते हैं। 

बांग्लादेश, पाकिस्तान और अन्य इस्लामी देशों में हिंदू, सिख और ईसाई समुदायों के लिए जीवन जीना कठिन हो गया है। यहां तक कि बांग्लादेश जैसे देश में जहां एक समय तक धार्मिक विविधता का सम्मान था, वहां अब कट्टरपंथी ताकतें पूरे हिंदू समुदाय को निशाना बना रही हैं। हिंदू घरों, मंदिरों और प्रतिष्ठानों को नष्ट किया जा रहा है, और खुलेआम उन्हें मौत की धमकियां दी जा रही हैं। इसके विपरीत, भारत एक हिंदू बहुल देश है, जहां मुस्लिम समुदाय का अस्तित्व और विकास बिना किसी समस्या के जारी है।

 

भारत के नेताओं का यह कर्तव्य बनता है कि वे बांग्लादेश में हो रहे इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाएं, चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस। यह मानवाधिकार और इंसानियत का सवाल है, न कि किसी विशेष समुदाय या वोट बैंक की राजनीति का। भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बांग्लादेश में हो रही हिंसा का विरोध करना चाहिए और पीड़ितों की मदद के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 

आज जब दुनिया के सामने इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद की नई लहर आ रही है, तो भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश को इस पर खड़ा होना चाहिए। भारत के नेताओं को अपनी राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर इंसानियत की रक्षा करनी चाहिए, ताकि बांग्लादेश में हो रहे नरसंहार और अत्याचार के खिलाफ एक संयुक्त आवाज उठ सके और पीड़ित समुदायों को सुरक्षा और न्याय मिल सके। 

यह समय है जब भारतीय नेतृत्व को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी और बांग्लादेश में हो रहे इन नरसंहारों और अत्याचारों पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा।

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