नई दिल्ली: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद से सांसद के रूप में शपथ ली है। असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद सीट पर 3.38 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की कोम्पेला माधवी लता को 3,38,087 वोटों से हराकर लगातार पांचवीं बार सांसदी का चुनाव जीता था। शपथ लेने के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने "जय भीम, जय फिलिस्तीन, जय मीम, जय तेलंगाना और अल्लाहु अकबर" के नारे लगाए। 'जय फिलिस्तीन' का नारा लोकसभा के कुछ सांसदों को पसंद नहीं आया और उन्होंने इस पर आपत्ति जताई जिसके बाद स्पीकर ने कहा कि यह रिकॉर्ड में नहीं जाएगा। दरअसल, फिलिस्तीन का दावा है कि, इजराइल ने उसकी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। दुनियाभर के मुस्लिम भी यही मानते हैं, और यही कारण है कि हमास, हिजबुल्लाह, फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद जैसे कई आतंकी संगठन यहूदी देश इजराइल के खून के प्यासे हैं और उस पर हमला करते रहते हैं। छोटे-मोटे रॉकेट हमलों को इजराइल का आयरन डोम हवा में ही मार गिराता है, इससे इजराइल का पैसा तो खर्च होता है, लेकिन उसके नागरिकों की क्षति नहीं होती, तो वो पलटवार भी नहीं करता। किन्तु, 7 अक्टूबर 2023 में फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास द्वारा इजराइल पर बेहद भयावह हमला किया था, जिसमे 1200 लोग मारे गए थे, इसके आवला सैकड़ों इजराइली नागरिकों को हमास ने बंधक भी बना लिया था, महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए। एक महिला का शव तो आतंकियों द्वारा नग्न अवस्था में सड़कों पर घुमाते और अल्लाहु अकबर के नारे लगाते हुए वायरल भी हुआ था। हालाँकि, अधिकतर मुस्लिम हमास को आतंकी नहीं मानते, वे इसे स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाला संगठन बताते हैं, जैसे कश्मीरी आतंकियों के लिए भी एक धारणा है कि वो कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने भी इसीलिए बिना हमास की निंदा किए, फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया था, ताकि मुस्लिम वोटर्स नाराज़ न हों। अब थोड़ा इस कहानी को समझ लेते हैं। इतिहास बताता है कि, यहूदी लोग लगभग 4000 से उस स्थान को अपना देश मानते हैं, जिसे आज इजराइल कहा जाता है। ईसा मसीह से भी लगभग 1000 साल पहले, राजा डेविड के पुत्र राजा सोलोमन ने यहूदियों का पहला मंदिर बनवाया था। उस वक़्त दुनिया में ईसाई धर्म और इस्लाम का नाम भी नहीं था। ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल इस जगह को यहूदियों को ईश्वर द्वारा सौंपी गई जमीन बताती है, बाइबिल में साफ़ साफ़ इजराइल नाम का जिक्र है। कुरान में भी इजराइल और बानी इजराइल (इजराइल की संतान) का जिक्र कई बार आया है, लेकिन स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन देश का जिक्र नहीं है। कालांतर में जब बेबीलोन साम्राज्य ने यहूदियों के मंदिर को तोड़ा, वहां कब्जा किया, तो यहूदियों ने वहां से पलायन किया। इजराइल पर कई बार हमले हुए और यहूदियों के आने जाने का सिलसिला चलता रहा। कई बार शासन बदलने के बाद इसके बाद यहाँ ओटोमन साम्राज्य ने शासन किया, जो इस्लाम से था। उस समय यहाँ इस्लाम जमकर फैला और यहूदियों की संख्या काफी कम हो गई। फिर दौर आया प्रथम विश्व युद्ध का, जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम हुआ करता था और भारतीय रजवाड़ों की सेना अंग्रेज़ों की तरफ से लड़ रही थी। इसी बीच 23 सितंबर 1918 को अंग्रेज़ों ने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा (इजराइल का एक नगर) पर कब्ज़ा करने का आदेश दिया। तब इतहास का एकमात्र ऐसा युद्ध लड़ा गया, जहाँ एक तरफ तलवार और भाले थे, तो दूसरी तरफ बन्दूक और तोपें। जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह की सेना ने ओटोमन साम्राज्य को हराकर वो देश अंग्रेज़ों को सौंप दिया। इस बीच यहाँ यहूदियों के आकर बसने का सिलसिला वापस शुरू हो गया, भले ही रफ़्तार धीमी थी। अंग्रेज़ काफी समय तक वहां शासन करते रहे। फिर 1947 में अंग्रेज़ों ने भारत की आज़ादी के साथ बंटवारा कर पाकिस्तान बनाया, वहीं, 1948 में ओटोमन साम्राज्य से जीती गई जमीन को बांटकर इजराइल (44%) और फिलिस्तीन (48%) नाम से दो देश बना दिए। इजराइल यहूदियों का हो गया, फिलिस्तीन मुस्लिमों का। जमीन की लड़ाई के अलावा इसे एक तरह की मजहबी लड़ाई भी माना जाता है। क्योंकि, इस्लामी धर्मग्रन्थ सहीह अल -बुखारी के अनुसार, अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "क़यामत (जिसके बाद मुसलमान जन्नत में चलेजाएंगे )उस समय तक नहीं आएगी, जब तक तुम यहूदियों से युद्ध न कर लो और यहाँ तक कि जिस पत्थर के पीछे यहूदी छुपा हो, वह (पत्थर) न कहे कि ए मुसलमान! यह मेरे पीछे यहूदी छुपा है, इसकी हत्या कर दो।" अब कई मुसलमान हदीसों की प्रमाणिकता पर सवाल उठाते हैं, लेकिन जो इसे सच मानते हैं, वो तो यहूदियों के खून के प्यासे होंगे ही। बेशक मुस्लिमों के दुनिया में 56 मुल्क हैं, लेकिन लगभग 1 करोड़ की आबादी वाले यहूदी समुदाय वाले इजराइल पर जमीन कब्जा करने के आरोप लगते हैं। कुछ हद तक ये आरोप सच भी हैं, क्योंकि 1948 को इजराइल के अस्तित्व में आने के साथ ही पड़ोसी मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक जैसे इस्लामी देशों ने उस पर एक साथ आक्रमण कर दिया था, बदले में इजराइल ने युद्ध जीता और जमीन हथिया ली। इसके बाद भी अरब देशों ने इजराइल पर हमले किए, बदले में इजराइल उन्हें हराता और जमीन पर कब्जा कर लेता। 1967 का एक युद्ध काफी चर्चित है, जिसमे कई मुस्लिम देशों और आतंकी संगठनों ने इजराइल पर हमला कर दिया था, जिसे इजराइल ने 6 दिनों में ही जीत लिया और फिर जमीन कब्जा कर ली। हालाँकि, मुस्लिम उम्माह के प्रति ओवैसी की सहानुभूति होना लाज़मी है, लेकिन थोड़ी हमदर्दी देश के प्रति भी होना चाहिए। पाकिस्तान ने जो कश्मीर कब्ज़ा कर रखा है, उसके खिलाफ भी ओवैसी को आवाज़ उठानी चाहिए, लेकिन वे तो 370 हटाने का भी विरोध करते हैं, जो भारतीय कश्मीर को पाकिस्तानी घुसपैठ से बचाता है। 62 की जंग में चीन ने जो भारत का हिस्सा छीन लिया था और नेहरू जी ने उसे बंजर जमीन बताया था, उसके खिलाफ कभी बोलें ओवैसी ? बलूचिस्तान कहता है कि हम पाकिस्तान का हिस्सा नहीं, उसकी सेना हम पर जुल्म करती है, बलूच मुस्लिमों के लिए कभी बोलें ओवैसी ? चीन ने मस्जिदें तोड़कर उनके गुम्बद गिरा दिए, उइगर मुस्लिम औरतों का बलात्कार किया, उनके लिए बोलें ओवैसी ? लेकिन ओवैसी साहब घर में भी नहीं देखते, पड़ोस में भी नहीं, हज़ारों किलोमीटर दूर फिलिस्तीन उन्हें नज़र आता है, शायद इसे ही प्रोपेगेंडा कहते हैं। दरअसल, इजराइल-फिलिस्तीन की कहानी करीब करीब भारत-पाकिस्तान जैसी ही है। भारतीय मुस्लिम फिलिस्तीन का खुलकर समर्थन करते हैं, बदले में फिलिस्तीन भी कश्मीर को भारत का अंग मानने से इंकार करता है और इसे कब्ज़ा किया हुआ बताकर आज़ाद करने की मांग करता है। हमास के नेता ने भी कश्मीर पर वैसा ही जहर उगला था, जैसा पकिस्तान उगलता है। वैसे ओवैसी के ही समुदाय के एक इतिहासकार इरफ़ान हबीब और एक पुरातत्वविद केके मोहम्मद मानते हैं कि, काशी और मथुरा के मंदिर औरंगज़ेब द्वारा तोड़े गए थे और उन जगहों पर कब्जा है, तो क्या ओवैसी उस कब्जे के खिलाफ भी आवाज़ उठाएंगे ? उस वक़्त तो ओवैसी कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए 1991 के पूजा स्थल कानून का हवाला देते हैं कि, किसी धार्मिक संरचना के चरित्र को बदला नहीं जाना चाहिए। हालाँकि, ओवैसी ये भी कहते हैं कि, मेरी गर्दन पर छूरी भी रख दोगे तो भी भारत माता की जय, और वन्दे मातरम् नहीं बोलूंगा। वे इसे इस्लाम के खिलाफ बताते हैं। हालाँकि, संविधान उन्हें ऐसा करने की पूरी आज़ादी देता है, इसमें कुछ गलत नहीं। संविधान तो पाकिस्तान की जय बोलने से भी नहीं रोकता, ऐसा कहीं लिखा ही नहीं है की दुश्मन देश की जय बोलना अपराध है, बाबा साहेब को उम्मीद होगी कि इतना तो कोई नहीं गिरेगा। बेरहमी से पीटा, थूक चटवाया, जबरन लगवाए अल्लाहु अकबर के नारे..! 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