आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी व्रत के नाम से जानते हैं। जी हाँ और भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी का व्रत रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। कहा जाता है इस व्रत को करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी के साथ ही यमलोक की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस कथा के महत्व के बारे में विस्तार से बताया था। जी हाँ और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ-साथ इस व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा- विंध्याचल पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा क्रूर और हिंसक था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति में ही बीता था। एक दिन अचानक उसे जंगल में तपस्या करते हुए अंगिरा ऋषि से मिला। उसने अंगिरा ऋषि से कहा मेरा कर्म बहेलिया का है इस कारण मुझे न जाने कितने ही निरीह पशु-पक्षियों मारना पड़ा है।मैनें जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं, इसलिए मुझे नर्क ही जाना पड़ेगा। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने को कहा। महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा जाता है। बहेलिए ने विधि पूर्वक इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया और व्रत रखा। भगवान विष्णु की कृपा से बहेलिया को सारे पापों से छुटकारा मिल गया। मृत्यु के बाद जब यमदूत बहेलिए को यमलोक लेने के लिए आया तो वो चमत्कार देख कर हैरान हो गया। पापांकुशा एकादशी के प्रताप के कारण बहेलिए के सभी पाप मिट चुके थे। यमदूत को खाली हाथ यमलोक जाना पड़ा। बहेलिया भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ लोक गया। नवरात्रि: नेत्रों का है विकार तो जरूर करें नैनादेवी मंदिर के दर्शन पंजाब में गिरा था मातारानी का बाया वक्ष, होते हैं सिर्फ मुख के दर्शन कर्नाटक में स्थित है माता रानी का कर्नाट शक्तिपीठ, जानिए यहाँ गिरा था माँ का कौन सा अंग