नई दिल्ली: जेल में कैद उम्मीदवारों के सांसद बनने की प्रक्रिया में संसद से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि आपराधिक आरोपों वाले जन प्रतिधिनियों की तादाद लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि यह एक विडंबना है कि "जेलों में बंद लोग वोट नहीं दे सकते, लेकिन चुनाव लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा होगा कि ऐसे लोग संसद के लिए चुने जाएँगे। आरोपों को निर्दिष्ट करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है, जिसके अनुसार, उम्मीदवार चुनाव लड़ने से अयोग्य हो जाएँगे। विडंबना यह है कि जेल में बंद लोग वोट नहीं दे सकते, लेकिन चुनाव लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं।'' उन्होंने आगे कहा कि, एक संसदीय सीट 60 दिनों से अधिक समय तक खाली नहीं रह सकती, भले ही उन्होंने शपथ ली हो या नहीं। संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए और ऐसे लोगों को निर्वाचित नहीं होने देना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ऐसे उम्मीदवारों को फिर से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि जब तक वे हिरासत में रहते हैं, तब तक उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं होता है और जिन मामलों में उन्हें अपनी सीट खाली करनी है, उन्हें हिरासत से बाहर आने तक फिर से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि जेल में बिताए गए दिनों की संख्या के कारण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाएगा। इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए कानून लाना समय की मांग है। कहीं न कहीं एक प्रावधान है, जो उन्हें किसी को अधिकृत करके अपना नामांकन दाखिल करने की अनुमति देता है, इस तरह से उन्होंने चुनाव लड़ा है।" भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का जिक्र करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत पद्मनाभन ने कहा कि, "संविधान की खूबसूरती यह है कि यह उन लोगों की भी रक्षा करता है, जो इसमें विश्वास भी नहीं करते हैं।" पद्मनाभन ने कहा कि संसद में ऐसे मामलों से बचने का उपाय एक त्वरित सुनवाई है, जिसके परिणामस्वरूप जेल में कैद उम्मीदवारों को बरी या दोषी ठहराया जा सकता है। आरपी अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और 2 साल या उससे अधिक की कैद की सजा सुनाई जाती है, तो यह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता होगी। मंगलवार को चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार, खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल की है, जबकि शेख अब्दुल राशिद, ने बारामुल्ला सीट जीती है। अमृतपाल सिंह को पिछले साल अप्रैल में पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जब वह पुलिस से बचकर भागे थे और उनके खिलाफ सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगाया गया था। उन्होंने खडूर साहिब लोकसभा सीट पर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को 1,97,120 मतों के बड़े अंतर से हराया। वहीं, शेख राशिद ने बारामुल्ला सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को हराया। उन्होंने 2,04,142 मतों के अंतर से जीत हासिल की और उन्हें 4,72,481 वोट मिले। राशिद 9 अगस्त, 2019 से कथित आतंकी वित्तपोषण के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद हैं, जबकि सिंह पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है और उन्हें असम की डिब्रूगढ़ जेल भेज दिया गया है। संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य ने बताया कि जेल में बंद खालिस्तानी अलगाववादी और वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह और इंजीनियर अब्दुल राशिद, जिन्होंने लोकसभा चुनाव जीता है, अदालत की अनुमति से शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने और महत्वपूर्ण मतदान में हिस्सा लेने के लिए संसद आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि, "वे (जेल में बंद सांसद) संसद आ सकते हैं। पहली बात तो यह है कि अब उन्हें आकर शपथ लेनी होगी। अदालत और संबंधित अधिकारियों की अनुमति से वे बाहर आकर शपथ ले सकते हैं। पुलिस उन्हें संसद लेकर आएगी, जिसके बाद उन्हें संसद की सुरक्षा को सौंप दिया जाएगा। शपथ लेने के बाद उन्हें पुलिस के साथ वापस जेल भेज दिया जाएगा। बिहार में दुखद हादसा, गंडक नदी में डूबने से 3 बच्चों की मौत 540 करोड़ का कोयला घोटाला, सरकार तक जाता था पैसा ! भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने शुरू की जांच मोदी 3.0 ने किया सरकार बनाने का दावा, राष्ट्रपति को सौंपा NDA सांसदों का समर्थन पत्र