नई दिल्ली: मई 2014 में, जब मोदी सरकार ने यूपीए को चुनाव में हराया और सत्ता संभाली, तभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) पर गंभीरता से विचार शुरू हो गया था। पीएम मोदी ने कई बार इस विचार की वकालत की है और संविधान दिवस पर भी यह स्पष्ट किया कि एक देश-एक चुनाव अब केवल बहस का मुद्दा नहीं, बल्कि यह विकसित भारत की एक बड़ी जरूरत है। उनकी अगुवाई वाली कैबिनेट ने 18 सितंबर 2024 को इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जिससे यह तय हो गया कि भारत अब एक साथ सभी चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ेगा। इससे देश की प्रगति को गति मिलेगी और चुनावों पर होने वाले भारी खर्च की बचत होगी। संभवतः संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर कानून बनाया जाएगा। क्या पहले होते थे एकसाथ चुनाव ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का विजन पेश किया था और इसे स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भी समर्थन मिला। उन्होंने इस विचार को लागू करने की आवश्यकता को बार-बार रेखांकित किया है। इसके तहत, देशभर में एक ही दिन या चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे। ऐसा पहले भी हुआ करता था, जब 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि, 1967 के बाद की स्थिति ने इस परंपरा को तोड़ दिया। कांग्रेस पार्टी के सत्ता (इंदिरा कार्यकाल) में रहते हुए विपक्ष द्वारा शासित कई विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं और इसके बाद लोकसभा भी भंग कर दी गई। यह प्रक्रिया कई दशकों तक नहीं बदली। कोविंद पैनल के क्या सुझाव ? 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद, इस विचार पर फिर से ध्यान केंद्रित किया गया। दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें सुझाव दिया गया कि यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे करोड़ों रुपए की और काफी वक्त की बचत हो सकती है, जिससे विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। इसके मद्देनजर, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक 8 सदस्यीय समिति बनाई गई, जिसने 2 सितंबर 2023 को अपना कार्य शुरू किया और 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) का उद्देश्य पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराना है। इसका मतलब यह होगा कि मतदाता एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 1967 के चुनाव के बाद राज्यों में विधानसभा के समय से पहले भंग होने की घटनाओं ने इस परंपरा को तोड़ दिया। इसके बाद, 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद, इस विचार पर फिर से काम शुरू हुआ। कोविंद पैनल ने प्रस्तावित किया है कि सभी राज्यों के विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ा दिया जाए। यदि किसी विधानसभा में हंग असेंबली या नो कॉन्फिडेंस मोशन होता है, तो बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, और दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय के चुनाव कराए जा सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग को एक सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाएगी। पैनल ने चुनाव के लिए उपकरणों, जनशक्ति, और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है। बहुत कम हो जाएगा खर्च :- ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) के लागू होने से चुनाव के भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी। आजादी के बाद 1952 में चुनाव पर लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जबकि 2019 में चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। वर्तमान में यह खर्च बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। चुनाव एक साथ होने पर खर्च केंद्र और राज्य दोनों में बंट जाएगा और पूरे 5 सालों तक सरकार के कर्मचारी चुनाव की तैयारी में व्यस्त नहीं रहेंगे, जिससे विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। राजनीतिक दलों को भी चुनाव पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा, जिससे राजनीतिक भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। हालांकि, कुछ विपक्षी दल, विशेषकर क्षेत्रीय पार्टियां, एक साथ चुनाव कराने पर सहमत नहीं हैं। उन्हें डर है कि इससे उनकी सत्ता खो सकती है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस डर को तार्किक नहीं माना जाता है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर 62 सियासी दलों से संपर्क किया था और इस पर जवाब देने वाले 47 पार्टियों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुल 15 पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से चुनाव के खर्च और आचार संहिता की बार-बार की बाधाओं से निजात मिलेगी, जिससे आम आदमी भी बहुत परेशान होता है। अचार संहिता में कई विकास कार्य रुक जाते हैं। चुनाव आयोग के लिए पहले चरण में दिल्ली समेत चार राज्यों के चुनाव कराने की योजना है। दूसरे चरण में बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, और पुदुचेरी के चुनाव होंगे। तीसरे चरण में उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, और त्रिपुरा के चुनाव होंगे। राजनितिक विश्लेषकों के अनुसार, कुल मिलाकर, ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) का प्रस्ताव भारतीय जनता के हित में है। यह न केवल जनता के पैसे की बचत करेगा बल्कि समय की भी बचत होगी। वहीं, सरकारें भी अपने काम पर फोकस कर सकेंगी, उन्हें साल में जगह जगह होने वाले चुनावों के लिए अलग-अलग एजेंडा बनाने में वक़्त नहीं लगाना होगा और ना ही रैलियां करनी पड़ेंगी। 5 साल में एक बार प्रचार करो और बाकी समय जनहित में काम करो। इसके साथ ही चुनावी खर्च में कमी, भ्रष्टाचार पर अंकुश, और विकास पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना बढ़ेगी। इस तरह के सुधार से भारत को एक विकसित और आत्मनिर्भर देश बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जाएगा। ‘3 खानदानों के शिकंजे में नहीं रहेगा जम्मू-कश्मीर’, श्रीनगर में जमकर बरसे PM मोदी 'चाँद पर इंसान उतारने के करीब है भारत..', चंद्रयान-4 को मंजूरी मिलने से गदगद वैज्ञानिक 'वन नेशन-वन इलेक्शन नया संविधान लिखने का प्रयास…', मोदी सरकार पर संजय राउत का हमला