बीते कुछ दिनों से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगी हुई है। भारत के इक्का दुक्का जिलों में दाम 100 के पार जा चुके हैं। वहीं दिल्ली समेत ज्यादातर शहरों में कीमतें 90 के पार पहुंच गई हैं। इस कीमत बढ़ोतरी का सबसे अधिक दोष केंद्र एवं राज्य सरकारों के टैक्स को दिया जा रहा है। ऐसे में एक बार फिर से पेट्रोल तथा डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग उठ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, जीएसटी के उच्च रेट पर भी पेट्रोल-डीजल को रखा जाए तो मौजूदा दाम कम होकर आधी रह सकते हैं। वही ऐसा नहीं है कि सरकार इस बारे में चर्चा नहीं कर रही है। दरअसल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तथा पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसके हिंट भी दिए हैं। टैक्स के मौजूदा इंतजाम पर ध्यान दे तो पेट्रोल एवं डीजल पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क तथा राज्य सरकारें वैट वसूलती हैं। इन दोनों टैक्स तथा वैट का बोझ इतना अधिक है कि 35 रुपए का पेट्रोल तमाम प्रदेशों में 90 से 100 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच रहा है। पेट्रोल डीजल की बात करें तो इस पर केंद्र ने क्रमशः 32.98 रुपए लीटर तथा 31.83 रुपए लीटर का उत्पाद शुल्क लगाया है। साथ ही पेट्रोल डीजल प्रदेश की कमाई का भी प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में 1 जुलाई 2017 को जीएसटी निर्धारित करते समय सरकार ने पेट्रोल और डीजल को इसके दायरे से बाहर रखा था। इस वक़्त देश में 4 प्राथमिक जीएसटी रेट हैं - 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत तथा 28 प्रतिशत है। वहीं पेट्रोल तथा डीजल पर केंद्र एवं राज्य सरकारें उत्पाद शुल्क एवं वैट के नाम पर 100 प्रतिशत से अधिक टैक्स वसूल रही हैं। ऐसे में अगर सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के तहत सम्मिलित करती है तो पुरे भारत में ईंधन की एक समान दाम होंगे। दाम घटकर आधी हो सकते हैं। लैपटॉप, टैबलेट और पीसी के Mfg को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उत्पादन के लिए बनाई जा रही है योजना आज 5 बजे तक होगा शेयर बाजार में कारोबार, तकनीकी खराबी के कारण हुई देरी आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बिटकॉइन पर ' बड़ी चिंताएं ' जताईं