पियूष मिश्रा का शायराना अंदाज़

1. आज मैंने फिर जज़्बात भेजे, आज तुमने फिर अलफ़ाज़ ही समझे.

2. इंसान खुद की नज़र में सही होना चाहिए, दुनिया तो भगवन से भी दुखी है.

3. मैं तुमसे अब कुछ नहीं माँगता ऐ खुदा, तेरी देकर छीन लेने वाली आदत मुझे मंज़ूर नहीं.

4. दर्द की बारिशों में हम अकेले ही थे, जब बरसी खुशियां, न जाने भीड़ कहाँ से आ गई.

5. कैसे करें हम खुद को तेरे प्यार के काबिल, जब हम आदतें बदलते है, तुम शर्ते बदल देते हो.

6. अभी अभी कुछ गुज़ारा है, लापरवाह, धुल में दौड़ता हुआ, ज़रा पलट के देखु तो, बचपन था शायद.

7. ख्वाहिशो को जेब में रख कर निकला कीजिए, जनाब, खर्चा बहुत होता है, मंज़िलो को पाने में.

8. ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है, शामे काटती  नहीं और साल गुज़रते चले जा रहे हैं.

9. उम्र भर उठाया बोझ उस “कील” ने... और लोग तारीफ़ “तस्वीर” की करते रहे.

10. अगर बेवफाओं के सर पर सिंग होते, तो मेरी वाली आज बारहसिंगा होती.

11. वो काम भला क्या काम हुआ जो मज़े ना दे Whisky का, और वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिसमे ना मौका सिसकी का.

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