पियूष मिश्रा की दिल छू लेने वाली शायरियां

1. सुकून मिलता हैं दो लफ्ज़ कागज़ पर उतार कर, चीख भी लेता हूँ और आवाज़ भी नहीं होती.

2. वो काम भला क्या काम हुआ जिसमे साला दिल रो जाये, वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जो आसानी से हो जाये.

3. काश तुम ये समझ पाते, की इस कम्भख्त ‘काश’ से… रोज कितना लड़ता हु मैं.

4. हर इंसान बिका हैं इस दुनिया में, कितना मेहेंगा या सस्ता, ये उसकी मज्बूरियत तय करती हैं.

5. हल्की फुल्की सी हैं जिंदगी, बोझ तो ख्वाहिशों का हैं.

6.  सोचता हूँ ज़हर दे दू, सब ख्वाहिशों को दावत पे बुलाकर.

7.  इंसान जो हैं बस दो नस्ल के होते हैं, एक होते हैं हरामी और दुसरे बेवकूफ.

8. कल तक उड़ती थी जो मुँह तक, आज पैरों से लिपट गई… चंद बुँदे क्या बरसी बरसात की, धूल की फ़ितरत ही बदल गई.

9. इलाइची के दानो सा मुक़द्दर है अपना… मेहक उतनी ही बिखरी…पीसे गए जितना.

10. ऐ उम्र कुछ कहा मैंने, शायद तूने सुना नहीं, तू छीन सकती है बचपन मेरा, पर बचपना नहीं.

11. न जाने कब खर्च हो गए, पता ही नहीं चला, वो लम्हे जो छुपा कर रखे थे जीने के लिए.

12. दायरा हर बार बनाता हूँ ज़िन्दगी के लिए, लकीर वही रहती है…मैं खिसक जाता हूँ.

13. गुस्सा आदमी से बहुत कुछ करवाता है, और ये जो लव है ना लव? ये सिर्फ मरवाता है.

14. एक इतवार ही है जो रिश्तो को संभालता है, बाकी दिन किस्तो को संभालने में खर्च हो जाते है.

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