'गेंहू' से तय होगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितने विश्वसनीय हैं पीएम मोदी, जानिए कैसे ?

नई दिल्ली: खाद्य सुरक्षा का बढ़ता खतरा पीएम नरेंद्र मोदी को एक पहेली में धकेलने के लिए तैयार है। पीएम मोदी के सामने उलझन यह है कि यूक्रेन में युद्ध से घटती आपूर्ति से प्रभावित देशों को गेहूं भेजना जारी रखें या उच्च मुद्रास्फीति को रोकने के लिए घर पर इसका भंडारण करें। दरअसल, भीषण गर्मी ने दक्षिण एशियाई देशों में गेहूं की पैदावार को काफी नुकसान पहुंचाया है, जिससे सरकार को निर्यात प्रतिबंधों के बारे में विचार करना पड़ा है।

खाद्य मंत्रालय का कहना है कि उसे अभी तक गेहूं के निर्यात को नियंत्रित करने का कोई मामला नज़र नहीं आता है, यह एक ऐसा सवाल है जो आगे भी उठेगा और पीएम मोदी व उनकी सत्ताधारी भाजपा के लिए सियासी प्रभाव डालेगा। पीएम मोदी के समक्ष एक भरोसेमंद वैश्विक नेता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत करने का प्रश्न है। साथ ही उन्हें रिकॉर्ड-उच्च मुद्रास्फीति के संबंध में घरेलू स्तर पर निराशा को भी देखना है। यह ऐसा मुद्दा है जिसने पूर्व की सरकार को गिरा दिया और सत्ता में उनके उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। पीएम मोदी ने विगत गुरुवार को गेहूं की सप्लाई, भंडार और निर्यात की स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने गुणवत्ता मानदंडों और मानकों को सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को तमाम आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए, ताकि भारत को खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों के पक्के स्रोत के तौर पर विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि जब भी मानवता पर संकट आता है, तो भारत निराकरण लेकर आता है।

विश्व के शीर्ष खरीदार मिस्र ने हाल ही में भारत को गेहूं के इम्पोर्ट के स्रोत के रूप में स्वीकृति दी है। गत माह खाद्य और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि भारत गेहूं का एक स्थायी निर्यातक बनने की उम्मीद करता है, जो इस वर्ष 15 मिलियन टन शिपिंग करेगा, जबकि 2021-22 में यह करीब 7.2 मिलियन था। गोयल ने कहा कि अधिकारी नियमों में रियायत देने के लिए विश्व व्यापार संगठन पर जोर दे रहे हैं ताकि भारत राज्य के भंडार से एक्सपोर्ट कर सके।

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