देश में जारी घोटालों पर घोटालों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. जांच एजेंसियां हर दिन बड़े खुलासे कर रही है. ऐसे में सवालों के घेरे में सरकार खड़ी है और देश पूछ रहा है कि जब ये सब इतने बड़े स्तर पर हो गया तब तक सुरक्षा के तमाम इंतज़ाम और नियम कायदे कानून क्या कर रहे थे. साफ जाहिर है बिना मिली भगत के तो ये सब होने से रहा, ऐसे में सरकारी आकड़े कहते है कि विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे और भी कई नाम है जो देश के कुल 7.7 लाख करोड़ रुपए का घोटाला कर के बैठे है और तो और सरकार भी इस रकम को डूब की गिनती में डाल चुकी है. पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ गणना करके और आधिकारिक घोषणा करके कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना ही सरकार की इकलौती जिम्मेदारी है. क्यों और किस कानून के तहत सरकार गुनहगारों के गिरेबां तक पहुंचने के बाद भी अपना हाथ पीछे खींच रही है. सवालों के घेरे में बैंकिंग प्रणाली, गवर्नैंस की गुणवत्ता ,धोखेबाजों को सहायता, गरीब और किसानों की तकलीफ, राष्ट्रीय खजाने के चौकीदार,पारदर्शी एवं जवाबदार व्यवस्था, इलैक्ट्रानिक एवं सूचना टैक्नॉलोजी, प्राइवेट और सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारी, आर.बी.आई. तक है मगर इन सब के बीच जो सब ज्यादा ठगा हुआ महसूस कर रही है, वो है देश की जनता. ईडी ने नीरव मोदी की पत्नी को भेजा समन PNB से जन धन लूट योजना का कनेक्शन चौकीदार को पता था- कांग्रेस प्रवक्ता PNB : मेहुल चोकसी का पत्र स्टाफ के नाम