नई दिल्ली : बसपा प्रमुख मायावती द्वारा मंगलवार को राज्यसभा की सदस्यता से दिया गया इस्तीफा यूँ तो अचानक दिया लगता है, लेकिन यदि गंभीरता से विचार करें तो इसकी व्यूह रचना पहले ही तैयार कर ली गई थी और जानबूझ कर राष्ट्रपति चुनाव के बाद का दिन चुना, ताकि राज्य सभा के सीधे प्रसारण के दौरान दलितों के मुद्दे पर दी जा रही इस कुर्बानी को दलितों के बीच यह कहकर भुनाया जा सके कि दलितों की पीड़ा को सुना नहीं जा रहा है. दरअसल यह मायावती की खुद के वजूद को बचाने की कोशिश है, क्योंकि उन्हें लोकसभा के बाद दो बार राज्य में लगातार हार मिल चुकी है. ऐसे में उनके सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है. उनका यह कदम क्या परिणाम देगा यह तो समय ही बताएगा. गौरतलब है कि बीजेपी यूपी में दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में धीरे -धीरे कामयाब होती दिख रही है. वहीँ मायावती यूपी के 19 प्रतिशत दलितों को अपने पाले में करने में असफल दिख रही हैं. 12 प्रतिशत जाटव ही मायावती के कट्टर समर्थक है,अन्यथा बीजेपी नेताओं ने दलितों के घर खाना खाकर और रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर मायावती के पारम्परिक वोट बैंक में सेंध तो लगा ही दी है. बता दें कि मायावती का राज्यसभा का कार्यकाल वैसे भी 8 महीने बाद 2 अप्रैल 2018 को खत्म होना है.मायावती जानती है कि अपने दल बीएसपी के भरोसे उन्हें राज्यसभा में एक और कार्यकाल नहीं मिल सकता, क्योंकि उनके पास सिर्फ 18 विधायक हैं, जबकि यूपी में राज्यसभा की एक सीट के लिए 38 होना जरुरी है . 2014 के लोकसभा एक भी सीट नहीं मिलने और उनके इस्तीफे के बाद राज्यसभा में उनकी पार्टी के अब केवल 5 सांसद बचे हैं. इसे देखकर कहा जा सकता है कि बीएसपी सुप्रीमो अपने राजनीतिक वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं. जिसे बचाने के लिए ही यह प्रायोजित इस्तीफा दिया गया.राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी द्वारा रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाए जाने के बाद ही यह माना जाने लगा था कि मायावती जल्द ही जवाबी कदम उठाएंगी, लेकिन वह क्या और कैसा होगा यह अज्ञात था. उल्लेखनीय है कि मायावती ने इस्तीफा देने के लिए राष्ट्रपति चुनाव होने के एक दिन बाद का समय सोच समझ कर चुनकर आक्रामक राजनीति का संकेत दिया है. मायावती ने दलितों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा बनाकर राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी . उनकी गणना के हिसाब से टीवी पर लाइव इस्तीफे के ऐलान का अधिक असर पड़ेगा. इसलिए उन्होंने चुपचाप राज्य सभा से कार्यकाल खत्म होने का इंतजार करने के बजाय हंगामेदार ढंग से सदस्यता छोड़ने का फैसला किया. लेकिन अब यह देखना बाकी है कि मायावती को अपने इस कदम से कितना नफा - नुकसान होगा. हालाँकि राजद प्रमुख लालू यादव ने उन्हें बिहार कोटे से फिर राज्य सभा में भेजने की बात कही है. यह भी देखें सरकार बोलने नहीं देती है इसलिए दिया इस्तीफा - मायावती मायावती के इस्तीफे पर लालू प्रसाद यादव ने कहा, हम मायावती के साथ है