क्लर्क, पत्रकार से लेकर राष्ट्रपति की कुर्सी तक, आसान नहीं रहा 'प्रणब दा' का जीवन

देश के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी की आज प्रथम पुण्यतिथि है. प्रणब मुखर्जी को ज्ञान का धनी, राजनीति और कूटनीति का विद्वान माना जाता था. यही कारण था कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल से कांग्रेस से जुड़े प्रणब मुखर्जी पार्टी में दिग्गज और कद्दावर नेता बने. उन्होंने अपने सियासी जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देखे. इंदिरा गांधी सरकार से लेकर मनमोहन सिंह की सकरार में केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा रहे और राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे.  

11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के छोटे से गांव मिराती में जन्मे प्रणब दा जमीन से जुड़े हुए नेता थे. उन्होंने कोलकाता से राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में MA किया और कोलकाता यूनिवर्सिटी से LLB की भी पढ़ाई की. 1963 में प्रणब मुखर्जी ने कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के दफ्तर में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में अपने करियर ला आगाज़ किया. इसके बाद अपने ही कॉलेज विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर बने. सियासत में एंट्री करने से पहले मुखर्जी ने देशर डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में पत्रकार के रूप में भी कार्य किया. राजनीति में प्रणब मुखर्जी लगभग 5 दशक तक रहे और कई अहम पदों पर रहे. इंदिरा गांधी सरकार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके मुखर्जी को कांग्रेस का सबसे बड़ा और विश्वसनीय चेहरा माना जाता था. 

प्रणब मुखर्जी ने 1969 से सियासत में कदम रखा और पहली बार उच्च सदन के लिए चुने गए. मुखर्जी पांच बार संसद के राजयसभा के सदस्य रहे. वर्ष 1973 में प्रणब मुखर्जी पहली बार केंद्रीय मंत्री बने. उसके बाद वे लगातार इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी कैबिनेट का हिस्सा रहे. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज कर प्रणब दा लोकसभा सदस्य बने और 8 साल तक लोकसभा में सदन के नेता रहे. 2012 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया. राष्ट्रपति के रूप में भी प्रणब दा ने एक अमिट छाप छोड़ी. इस दौरान उन्होंने दया याचिकाओं पर कड़ा रुख अपनाया. उनके पास 34 दया याचिकाएं आईं और इनमें से 30 को उन्होंने खारिज कर दिया. इनमें 2008 मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब, 2001 में संसद हमलों के मुख्य आरोपी अफजल गुरू और 1993 में मुंबई बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेनन की दया याचिका शामिल है. कसाब को 2012, अफजल गुरू को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी दे दी गई थी. जनता के राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले प्रणब दा को राष्ट्रपति भवन को जनता के करीब ले जाने के लिए उठाए गए कदमों के लिए सदैव याद किया जाएगा. 

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