आप सभी को बता दें कि पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है और पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना. वैसे इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है और गुड़ और चावल उबालकर सूर्य को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का नाम ही पोंगल है. इसी के साथ चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के चार पोंगल कहते हैं और पूर्णतया प्रकृति को समर्पित यह त्योहार फसलों की कटाई के बाद आदि काल से मनाया जाता है. इस बार पोंगल 15 जनवरी से शुरू हो रहा है और यह त्यौहार 18 जनवरी तक चलेगा. ऐसे में आइए जानते हैं पोंगल की पौराणिक कथा. पोंगल की पौराणिक कथा - मदुरै के पति-पत्नी कण्णगी और कोवलन से जुड़ी है. एक बार कण्णगी के कहने पर कोवलन पायल बेचने के लिए सुनार के पास गया. सुनार ने राजा को बताया कि जो पायल कोवलन बेचने आया है वह रानी के चोरी गए पायल से मिलते जुलते हैं. राजा ने इस अपराध के लिए बिना किसी जांच के कोवलन को फांसी की सजा दे दी. इससे क्रोधित होकर कण्णगी ने शिव जी की भारी तपस्या की और उनसे राजा के साथ-साथ उसके राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगा. जब राज्य की जनता को यह पता चला तो वहां की महिलाओं ने मिलकर किलिल्यार नदी के किनारे काली माता की आराधना की. अपने राजा के जीवन एवं राज्य की रक्षा के लिए कण्णगी में दया जगाने की प्रार्थना की. माता काली ने महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर कण्णगी में दया का भाव जाग्रत किया और राजा व राज्य की रक्षा की. तब से काली मंदिर में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस तरह चार दिनों के पोंगल का समापन होता है. 4 दिनों तक मनाया जाता है पोंगल का त्यौहार, आइए जानते हैं उनके बारे में इन ख़ास संदेशों से दें अपने प्रियजनों को पोंगल की शुभकामनाएं आइए जानते हैं मकर संक्रान्ति, लोहड़ी व पोंगल का संबंध