दशहरा : किस तरह से की जाती है शस्त्र-वाहन की पूजा, क्या कहती है परंपरा ?

भगवान श्री राम ने अन्याय रूपी रावण का वध कर इस धरती पर रामराज्य की स्थापना की थी. रावण के राज में मानव और देवताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था, हालांकि श्री राम द्वारा रावण का वध करने के साथ ही धरती पर रामराज्य शुरू हुआ और वहीं लंका की बात की जाए तो लंका की गद्दी पर रावण के वध के बाद उसका छोटा भाई विभीषण विराजित हुआ. विभीषण श्री राम की शरण में आया था और भगवान श्री राम के आदेश पर ही लंका के राजा के रूप में विभीषण का राज्याभिषेक हुआ.

दशहरा की पूजा की परंपरा...

दशहरा का दिन धार्मिक दृष्टि से काफी शुभ होता है. इस दिन के मुहूर्त को विजय मुहूर्त कहते हैं और साथ ही कहा जाता है कि यह मुहूर्त सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है. प्राचीन मान्यता के मुताबिक, शत्रु पर विजय के लिए इस दिन निकलना अच्छा होता है. गाड़ी, इलेक्‍ट्रॉनिक सामान, आभूषण और वस्‍त्र आदि भी इस मुहूर्त में खरीदना अच्छा माना गया है. 

दशहरा के दिन न केवल रावण दहन किया जाता है, बल्कि इस दिन शस्त्र पूजा और वाहन पूजन का भी प्रचलन है. जबकि इनके साथ ही शमी के व्रख का भी इस दिन पूजन होता है. लोग इस दिन अपने घरों में रखे हुए शस्त्र और अपने वाहनों को साफ कर उन्हें तिलक लगाते हैं और फिर उन्हें फूल या फूल माला अर्पित कर उनकी आरती उतारी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि युद्ध या फिर किसी आपत्ति के समय हमें शस्त्र और वाहन ही काम आते हैं. इसलिए इनके पूजन का भी महत्व है. हमें सदा ही अपने शस्त्रों और वाहनों को अच्छे से रखना चाहिए. शस्त्र और वाहन के पूजन के साथ ही इस दिन भगवान श्री राम, माता सीता और श्री हनुमान जी के पूजन का भी महत्व है. 

 

 

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