ईसाईयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने की इस भारतीय संत की तारीफ

नई दिल्ली: पोप फ्रांसिस ने भारत के महान संत श्री नारायण गुरु की विचारधारा और उनके संदेश की सराहना करते हुए इसे आज की दुनिया के लिए अत्यधिक प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि श्री नारायण गुरु का जीवन समानता, सामाजिक सुधार और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित था। यह विचार एर्नाकुलम जिले के अलुवा में सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के अवसर पर व्यक्त किए गए।

पोप ने जोर देकर कहा कि श्री नारायण गुरु का संदेश, जो सभी मनुष्यों को एक समान मानव परिवार का हिस्सा मानता है, आज के समय में बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि गुरु ने जाति, धर्म और सांस्कृतिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनके अनुसार, वर्तमान में कई समुदाय नस्ल, रंग, भाषा और धर्म के आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे हैं, जो समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है। 

श्री नारायण गुरु ने "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" का संदेश दिया और समाज में समानता की नींव रखी। उन्होंने मंदिर प्रवेश आंदोलन का नेतृत्व किया और धार्मिक स्थलों में दर्पण की स्थापना कर यह दिखाने की कोशिश की कि ईश्वर हर इंसान के भीतर है। उनका जन्म 22 अगस्त 1956 को केरल के चेमपजंथी गांव में हुआ था। वे एक ऐसे समय में समाज सुधारक बने जब जातिगत भेदभाव गहराई से समाज में जड़ें जमाए हुए था।  गुरु के कार्यों और उनके विचारों ने समाज को नई दिशा दी। आज भी उनके संदेश दुनिया भर में प्रासंगिक हैं और सामाजिक न्याय व सहिष्णुता के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

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